जागरण संपादकीय: कठिन होता जलवायु परिवर्तन से बचना, विकसित देशों को होना होगा सचेत

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जागरण संपादकीय: कठिन होता जलवायु परिवर्तन से बचना, विकसित देशों को होना होगा सचेत
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धनी देशों का कहना है कि प्रस्तावित राशि मौजूदा 100 अरब डॉलर से तिगुनी है इसलिए विकासशील देशों को नाराज होने की जगह खुश होना चाहिए मगर विकासशील देशों का कहना है कि यह जरूरत के एक चौथाई के बराबर भी नहीं है। इसीलिए भारत की प्रतिनिधि चांदनी रैना ने इसे ऊंट के मुंह में जीरा बताया। उन्होंने कहा कि यह समझौता एक मृगतृष्णा से अधिक कुछ नहीं...

शिवकांत शर्मा। विश्व मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष वायुमंडल का औसत तापमान औद्योगीकरण से पूर्व के तापमान से 1.54 डिग्री सेल्सियस ऊपर जा चुका है। तापमान वृद्धि के कारणों की जांच कर उसकी रोकथाम के लिए बने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के जलवायु सम्मेलन 1996 से होते आ रहे हैं। 2015 के पेरिस सम्मेलन में तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने के हरसंभव उपाय करने पर सहमति हुई थी। विज्ञानियों ने चेतावनी दी थी कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश नहीं लगा तो 2028 तक तापमान 1.

5 डिग्री पार कर जाएगा, जिसके बाद सूखे, बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं से निपटने एवं तापमान वृद्धि की रोकथाम और कठिन हो जाएगी। सदस्य देशों ने अपनी-अपनी परिस्थितियों के हिसाब से जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के प्रयास किए, मगर तापमान वृद्धि की गति बता रही है कि वे पर्याप्त नहीं रहे हैं। अजरबैजान की राजधानी बाकू में हाल में संपन्न हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में केवल दो उल्लेखनीय समझौते ही हो पाए। पहला कार्बन क्रेडिट स्कीम पर, जो लगभग दस साल से लंबित था। दूसरा जलवायु परिवर्तन की रोकथाम लिए वित्तीय...

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