जालौर में सरसों की फसल: बंपर पैदावार और पारंपरिक तरीके

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जालौर में सरसों की फसल: बंपर पैदावार और पारंपरिक तरीके
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जालौर जिले के रेवदर क्षेत्र में सरसों की फसल बंपर पैदावार देने की उम्मीद है. किसानों को पिछले साल सरसों के अच्छे दाम मिलने के कारण इस बार आलू और अन्य फसलों की जगह सरसों की खेती को प्राथमिकता दी है.

जालौर जिले के रेवदर उपखंड क्षेत्र में इन दिनों खेतों में सरसों की फसल हरियाली और पीले फूलों की चादर ओढ़े नजर आ रही है. किसान ों को बंपर पैदावार की उम्मीद साफ झलक रही है. ठंड बढ़ने और मौसम अनुकूल होने से सरसों की फसल को बेहतर बढ़त मिली है. सरसों , जिसे ‘पीला सोना’ कहा जाता है, इस बार छह हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में बोई गई है. पिछले साल सरसों के बेहतर दाम मिलने के कारण इस बार ज़िले के रेवदर क्षेत्र में कई किसान ों ने आलू और अन्य फसल ों की जगह सरसों की खेती को प्राथमिकता दी है.

सहायक कृषि अधिकारी पूराराम चौहान के अनुसार, सरसों की फसल जनवरी के अंत और फरवरी की शुरुआत तक तैयार हो जाएगी. समय पर सिंचाई और अनुकूल भूमि ने उत्पादन बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. पिछले साल सरसों के तेल के भाव ने किसानों और व्यापारियों को फायदा पहुंचाया था. बाजार में पंद्रह किलो सरसों का तेल ₹2000 से बढ़कर ₹2500 प्रति पंद्रह किलो तक पहुंच गया था. वर्तमान में सरसों के तेल का भाव ₹2280 प्रति पंद्रह किलो है. बेहतर बाजार मूल्य के कारण किसान सरसों की बुवाई को लेकर बहुत उत्साहित हैं. जालोर में आज भी शुद्ध सरसों के तेल के लिए परंपरागत घाणों का इस्तेमाल किया जाता है. किसान और ग्रामीण सरसों खरीदकर सीधे घाणों में तेल निकालते हैं. रेवदर और आस-पास के गांवों में कई आटा चक्कियों के साथ घाणे भी चलते हैं, जहां सरसों के अलावा तिल का तेल भी निकाला जाता है. ग्रामीण मानते हैं कि घाणे से निकला तेल बाजार के तेल से ज्यादा शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक होता है. किसान कांतिलाल माली ने बताया कि सरसों के बढ़ते दाम और बंपर उत्पादन ने इस फसल को इलाके की पहली पसंद बना दिया है. जालौर में सरसों का न केवल आर्थिक महत्व है बल्कि इससे ग्रामीण आज भी अपने पारंपरिक तरीकों को जीवित रखे हुए हैं. जिले में सरसों की खेती का यह सुनहरा दौर किसानों और स्थानीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है

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