जेल मैनुअल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला, जातिगत भेदभाव वाले कई प्रावधान ख़ारिज

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जेल मैनुअल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला, जातिगत भेदभाव वाले कई प्रावधान ख़ारिज
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मौजूदा जेल मैनुअल संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ थे और जातिगत भेदभाव करते थे. जानिए कोर्ट ने अपने आदेश में क्या-क्या कहा.

सुप्रीम कोर्ट में पत्रकार सुकन्या शांता ने जेल मैनुअल को लेकर याचिका दाख़िल की थीसुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 11 राज्यों के जेल मैनुअल के कई प्रावधान जाति के आधार पर भेदभाव करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि जाति के आधार पर जेल के अंदर काम बाँटे जाते हैं. साथ ही क़ैदी जिस बैरक में रहते हैं, उसे भी जाति के आधार पर तय किया जाता है.आईएमएफ़ से मिला बड़ा क़र्ज़ पाकिस्तान में लोगों की ज़िंदगी आसान बना पाएगा?हेमंत सोरेन और के. कविता पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के निचली अदालतों के लिए क्या मायने हैं?

कई जेलों में इन जनजातियों के लोगों को 'आदतन अपराधी' घोषित कर दिया जाता है, भले ही वो पहली बार दोषी ठहराए गए हों.जेल में होने वाले भेदभाव के उदाहरण की बात करें तो पश्चिम बंगाल के जेल मैनुअल में लिखा है कि सफ़ाई करने वाले 'मेहतर, हाड़ी या चांडाल' जाति के क़ैदी होने चाहिए, या कोई ऐसी जाति के क़ैदी जो आम तौर पर ये काम करते हों.

याचिका में सुकन्या शांता ने कहा था कि ऐसे प्रावधान अंग्रेजों के ज़माने से थे. उन्होंने ये भी सवाल उठाए थे कि ब्रितानी शासन के समय से चले आ रहे ऐसे प्रावधान आज़ाद भारत में क्यों जारी रहे.सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि ये स्पष्ट है कि जेलों में जाति के वर्गीकरण को आधार बनाया गया था कोर्ट ने कहा कि जाति के आधार पर प्रावधान बनाए जा सकते हैं, लेकिन जब वो किसी की सुरक्षा के लिए बने हों, लेकिन भेदभाव के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता.

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