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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू में कथित तौर पर ‘जानवरों की चर्बी’ वाले घी के इस्तेमाल मामले में सुनवाई करते राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि भगवान को राजनीति से दूर रखें.की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की उस टिप्पणी पर नाराज़गी व्यक्त की, जिसके बाद से यह
मालूम हो कि चंद्रबाबू नायडू के बयान के बाद इस विवाद ने तूल पकड़ा और सुप्रीम कोर्ट में तीन से ज़्यादा याचिकाएं दाखिल की गईं. याचिका दाखिल करने वालों में सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद वाईवी सुब्बा रेड्डी और इतिहासकार विक्रम संपत भी शामिल हैं. पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हम प्रथमदृष्टया मानते हैं कि जब जांच प्रक्रिया में थी, तो एक उच्च संवैधानिक पदाधिकारी की ओर से बयान देना उचित नहीं था, जो जनता की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है. मामले को देखते हुए यह उचित होगा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता यह निर्णय लेने में हमारी सहायता करें कि क्या पहले से नियुक्त एसआईटी को जारी रखा जाना चाहिए या किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की जानी चाहिए.’शीर्ष अदालत की सख्त टिप्पणियों के बाद आंध्र प्रदेश में राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है.
इस विवाद शुरुआत सीएम नायडू के आरोप से हुई थी, इसके बाद 19 सितंबर को तेलुगु देशम पार्टी ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा संचालित एक लैब रिपोर्ट जारी की, जिसमें कथित तौर पर तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम द्वारा भेजे गए घी के नमूनों में ‘बीफ टैलो’, ‘मछली का तेल’ और ‘लार्ड’ की पुष्टि की गई थी. टीटीडी ही प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का प्रबंधन करता है.
कोर्ट ने कहा, ‘एक बार जब आपने एसआईटी को आदेश दे दिया, तो जांच पूरी होने से पहले सार्वजनिक बयान देना क्यों आवश्यक था? जब चल रही जांच के दौरान उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा ऐसे बयान दिए जाते हैं, तो इसका जांच की अखंडता और एसआईटी अधिकारियों पर क्या प्रभाव पड़ता है. ऐसा बयान देकर आपने सिर्फ एक लाख या दो लाख लोगों की नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित किया है.’
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