दिल्ली में कांग्रेस का शून्य पर फंसना, झलकदार राजनीति का अंत?

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दिल्ली में कांग्रेस का शून्य पर फंसना, झलकदार राजनीति का अंत?
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दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति का नुकसान जारी है. विधानसभा चुनाव में सिर्फ तीन सीटें जीतने के साथ, कांग्रेस का भविष्य अस्पष्ट दिखाई दे रहा है. क्या दिल्ली में कांग्रेस का उदय फिर होगा?

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में भी शून्‍य पर फंस गई. कुल 70 में से सिर्फ तीन सीटें ऐसी थीं, जिन पर कांग्रेस के कैंड‍िडेट अपनी जमानत बचा पाए. बाकी जगह तो उम्‍मीदवारों की जमानत जब्‍त हो गई. जैसे ही यह खबर सामने आई सोशल मीडिया में अटल जी की वो बात वायरल होने लगी ..ना हार में ना जीत में क‍िंच‍ित नहीं भयभीत मैं…लोग कहने लगे क‍ि यह लाइनें कांग्रेस पर बिल्‍कुल सटीक बैठती हैं.

यह कव‍िता मशहूर कव‍ि श‍िवमंगल सिंह सुमन की है, जिसे अटल जी अक्‍सर सुनाया करते थे. यह बात जरूर है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी ने द‍िल्‍ली में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2% वोट बढ़ाया है. कांग्रेस को करीब 6.4 प्रतिशत वोट मिले, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 4.26 प्रतिशत वोट मिले थे. कांग्रेस की हालत ये थी कि राहुल गांधी ने एक्‍स पर एक पोस्‍ट करके छुट्टी पा ली. लिखा, दिल्ली का जनादेश हम विनम्रता से स्वीकार करते हैं. प्रदेश के सभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उनके समर्पण और सभी मतदाताओं को उनके समर्थन के लिए दिल से धन्यवाद. प्रदूषण, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध – दिल्ली की प्रगति और दिल्लीवासियों के अधिकारों की यह लड़ाई जारी रहेगी. सिर्फ तीन कैंड‍िडेट जमानत बचा पाए कांग्रेस के जो तीन उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में सफल रहे उनमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव भी शामिल हैं जिन्हें 40 हजार से अधिक मत और 27 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले. वे तीसरे स्थान पर रहे. यदि किसी कैंड‍िडेट को डाले गए कुल वोटों का 1/6 हिस्सा नहीं मिलता है तो जमानत जब्त हो जाती है. कस्तूरबा नगर से कैंड‍िडेट अभिषेक दत्त दूसरे कैंड‍िडेट थे जिन्‍होंने अपनी जमानत बचा ली. इतना ही नहीं, वे दूसरे स्‍थान पर भी रहे. यह दिल्ली की इकलौती सीट हैं जहां कांग्रेस दूसरे पर स्थान पर रही. दत्त ने 27,019 वोट हासिल किए और उन्हें भाजपा उम्मीदवार नीरज बसोया से 11 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. नांगलोई जाट तीसरी ऐसी सीट है जहां कांग्रेस जमानत बचाने में सफल रही. यहां से कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव रोहित चौधरी ने 31,918 वोट और 20.1 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया. वह तीसरे स्थान पर रहे. सभी बड़े नेता हार गए बड़े नेताओं की बात करें तो संदीप दीक्षित, अलका लांबा, कृष्णा तीरथ, मुदित अग्रवाल, हारून यूसुफ और राजेश लिलोठिया न सिर्फ हार गए बल्‍क‍ि अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. केजरीवाल को चुनौती देने वाले पूर्व सांसद दीक्षित सिर्फ 4,568 वोट हासिल कर सके और वे तीसरे स्थान पर रहे. सीएम आतिशी के खिलाफ कालकाजी से चुनाव लड़ने वाली महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा को सिर्फ 4,392 वोट मिले. मनमोहन सरकार में मंत्री रहीं कृष्णा तीरथ को सिर्फ 4,654 वोट से संतोष करना पड़ा. शीला दीक्षित सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे हारून यूसुफ बल्लीमारान से महज 13,059 वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत जब्त हो गई. 1. दिल्ली की राजनीति में 1998 से 2013 तक अपना सुनहरा दौर देखने वाली कांग्रेस के लिए यह लगातार तीसरा विधानसभा चुनाव था जिसमें उसे एक भी सीट नहीं मिली. कांग्रेस 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में भी अपना खाता नहीं खोल सकी थी. 2. कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ दौर 1998 से 2013 तक का रहा. शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगातार तीन चुनाव (1998, 2003, और 2008) जीते और दिल्ली में 15 साल तक सत्ता में रही. 1998 में 52 सीटें, 2003 में 47 सीटें और 2008 में 43 सीटें हासिल कीं. 3. आम आदमी पार्टी के उदय के बाद दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस डूबती नजर आई और 2013 के चुनाव में उसे सिर्फ 8 सीटें मिलीं. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कांग्रेस कहा, हमें बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, हालांकि वोट शेयर बढ़ा है. 203O में दिल्ली में एक बार फिर कांग्रेस सरकार बनेगी

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