दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ है। आम आदमी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की स्थिति भी बेहद दुर्बल रही है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम में भाजपा को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ है। वहीं आम आदमी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, जो पिछले दस साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज थी। वहीं कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं आई। कांग्रेस का सूपड़ा जरूर साफ हो गया, लेकिन 70 सीटों में से 14 सीटें ऐसी रही, जिन पर कांग्रेस के कारण 'आप' को हार का सामना करना पड़ा। दिल्ली चुनाव के परिणामों पर जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि 'और
लड़ो आपस में।' इस बयान का यही मतलब निकलता है कि कांग्रेस की वजह से आप की हार में वोटों का मार्जिन बहुत कम रहा। यदि आप और कांग्रेस में गठबंधन होता तो दिल्ली में दोनों पार्टियों की गठबंधन की सीटें 37 हो सकती थीं, जो बहुमत से एक सीट ज्यादा है। दरअसल, 14 सीटें ऐसी रहीं, जिनमें आप की हार का अंतर कांग्रेस को मिले मतों से कम है। कांग्रेस के वोटों पर आप का कब्जा दिल्ली में लंबे समय से भाजपा और कांग्रेस ही प्रतिस्पर्धी पार्टियां रही हैं। कांग्रेस को एंटी बीजेपी और बीजेपी को एंटी कांग्रेस वोट मिलता रहा। लेकिन 2013 में आप के उद्भव के साथ ही कांग्रेस के वोटों पर आप का कब्जा हो गया। 'आप' का वोट प्रतिशत बढ़ता रहा, कांग्रेस सिमटी। साल 2013 में आम आदमी पार्टी को 30 फीसदी मत मिले थे। साल 2020 में ये बढ़कर 54 प्रतिशत हो गए। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को साल 2013 में 25 प्रतिशत मत मिले थे, जो 2020 में घटकर 4 प्रतिशत तक ही रह गए। बीजेपी के 35 फीसदी के करीब मत अभी भी बरकरार हैं। इस तरह कांग्रेस और आप अलग अलग लड़ने की वजह से नुकसान में रहे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट और सीनियर जर्नलिस्ट राकेश बादल बताते हैं मेरा मानना है कि आप बीजेपी की 'बी' टीम है। ये पार्टी वहीं जाती जहां कांग्रेस को इसे हराना होता है। बीजेपी बनाम कांग्रेस जहां सीधी फाइट है, उन्हीं राज्यों में आप चुनाव लड़ने जाती है। वहीं कांग्रेस इतने चुनाव हार गई है कि दिल्ली चुनाव में इस बार कांग्रेस नेताओं का मनोबल टूटा हुआ था, वे तैयार ही नहीं थे चुनाव के लिए।राहुल और केजरीवाल क्यों नहीं आए साथ? लोकसभा चुनाव के बाद 'आप' नेता गोपाल राय और कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा था कि गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए था, उन्होंने घोषणा की थी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे। विशेषज्ञ बताते हैं कि कांग्रेस 5 से 10 तक सीटें चाहती थीं, लेकिन केजरीवाल ने असहमति जाहिर कर दी। साथ ही स्पष्ट कर दिया कि वे कांग्रेस से चुनावी गठबंधन नहीं करेंगे। यही नहीं, दोनों पार्टियों के नेताओं ने एकदूसरे पर जमकर आरोप लगाए। 'आप' को मिला ममता और अखिलेश का साथ। अखिलेश यादव दिल्ली आए और आप के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने भी केजरीवाल का ही साथ दिया। ऐसे में कांग्रेस अकेले पड़ गई। कांग्रेस का इसी वजह से चुनाव प्रचार ठंडा ही रहा
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