यह लेख देवी सरस्वती के जन्म के बारे में पौराणिक कथा को प्रस्तुत करता है। यह बताता है कि त्रिदेवों ने ब्रह्मांड में एक नई चेतना और ऊर्जा लाने के लिए देवी सरस्वती को जन्म दिया और उन्हें ज्ञान और कला का प्रसारित करने की जिम्मेदारी सौंपी।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सरस्वती सृष्टि की आरंभिक अवस्था में त्रिदेव ों द्वारा मानव जाति के निर्माण के बाद उत्पन्न हुईं। त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव, ब्रह्मांड में व्याप्त शांति को पूर्ण मानते थे। वे ब्रह्मांड में एक नई चेतना और ऊर्जा का प्रवाह चाहते थे। ब्रह्मा जी ने विष्णु और शिव की अनुमति से अपने कमंडल के जल को वेद मंत्रों के साथ छिड़का। इस अद्भुत क्रिया से एक शक्तिशाली ऊर्जा का उदय हुआ, जो एक चार-हाथों वाली स्त्री के रूप में प्रकट हुईं। वह स्त्री देवी सरस्वती थीं। उनके
चारों हाथों में एक वीणा, अष्टमुद्रा, एक पुस्तक और एक माला थी।त्रिदेव देवी सरस्वती का अभिवादन करते हुए उनसे वीणा बजाने का निवेदन किया। देवी सरस्वती ने उनका अभिवादन स्वीकार कर लिया और वीणा बजाना शुरू कर दिया। वीणा की मधुर ध्वनि से सारा ब्रह्मांड गूंज उठा। इस दिव्य संगीत ने स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल के सभी तीनों लोकों को अभिभूत कर दिया। सभी जीव-जंतु इस दिव्य संगीत का आनंद ले रहे थे। देवी सरस्वती के आगमन से ब्रह्मांड में नई चेतना और ऊर्जा का संचार हुआ। कला, ज्ञान और संगीत का प्रादुर्भाव इसी देवी के आगमन के साथ हुआ। ब्रह्मांड में जो शांति एक कमी लग रही थी वह सरस्वती के आगमन से पूर्णता में बदल गई।देवी सरस्वती के वीणा वादन से ब्रह्मांड में एक नया जीवन फूँका गया। इस प्रकार, देवी सरस्वती धरती पर आईं। त्रिदेवों ने देवी सरस्वती को संसार में ज्ञान का प्रसार करने की मुख्य जिम्मेदारी दी। माता सरस्वती ज्ञान की देवी ही नहीं बल्कि उन्हें स्वर की देवी भी माना जाता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार जो मनुष्य देवी सरस्वती की आराधना करता है, उसकी वाणी मधुर होती है और वे ज्ञान भी अर्जित करते हैं
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