पिता की डांट पर सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू किया, आज हैं एसडीएम

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पिता की डांट पर सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू किया, आज हैं एसडीएम
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हेमंत कुमार चौधरी का जीवन एक प्रेरणा का उदाहरण है। पिता की डांट पर उन्होंने प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी। आज वे मऊ जनपद के मुहम्मदाबाद गोहना तहसील के एसडीएम हैं।

मऊ: कहते हैं कि यदि हौसला बुलंद हो और कुछ करने का जज्बा हो तो कुछ भी किया जा सकता है. उसका सबसे बेहतरीन उदाहरण हेमंत कुमार चौधरी हैं. महराजगंज जनपद के तरैनी गांव में ओम प्रकाश चौधरी के घर 7 नवंबर 1978 का हेमंत कुमार चौधरी का जन्म हुआ था. वह अपने पिता की एक डांट पर प्राइवेट नौकरी छोड़ सरकारी नौकरी करने की तैयारी शुरू कर दी. उनके अंदर सिविल की नौकरी करने का जज्बा जाग उठा. हेमंत कुमार चौधरी आज मऊ जनपद के मुहम्मदाबाद गोहना तहसील के एसडीएम के पद पर कार्यरत हैं.

लोकल 18 से बात करते हुए एसडीएम हेमंत कुमार चौधरी ने बताया कि बचपन में वह प्राथमिक स्कूल में पढ़ाई किए. जबकि आज देखा जा रहा है कि लोग प्राथमिक विद्यालय की पढ़ाई छोड़कर सीबीएसई बोर्ड की तरफ झुकाव ज्यादा कर रहे हैं, लेकिन यदि हौसला बुलंद हो और कुछ करने का जज्बा हो तो किस विद्यालय में पढ़ाई हो रही है यह माने नहीं रखता है. गोरखपुर में हुई इंटर की पढ़ाई एसडीएम ने कहा कि माने यह रखता है कि आप क्या कर सकते हैं. आपको भविष्य में क्या बनाना है. वह बताते हैं कि तरैनी ग्राम सभा में ही वह प्राइमरी पाठशाला प्राथमिक विद्यालय में अपनी जूनियर की पढ़ाई किए. हालांकि पिताजी सर्विस में थे तो वह हाई स्कूल करने महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज गोरखपुर आ गए. वहां से वह 1993 में हाई स्कूल तथा 1995 में वह इंटर पास किया. पिता ने लगाई फटकार इंटर की पढ़ाई के बाद वह सिविल इंजीनियर की तैयारी शुरू किया और उनकी नौकरी लग गई. वह मात्र 3 महीने में नौकरी किए ही थे कि उनके पिताजी ने उन्हें डांट लगाई और कहा कि मुझे सरकारी नौकरी चाहिए ना कि प्राइवेट नौकरी. फिर वह प्राइवेट नौकरी छोड़ घर आ गए और आर्थिक सहयोग के लिए भाड़े पर ट्रैक्टर चलाने लगे और इस ट्रैक्टर को चलाकर पैसे की व्यवस्था कर कर वह 2000 में सिविल परीक्षा की तैयारी शुरू कर दिए. सिद्धार्थनगर में मिली पहली नौकरी 2003 में ऑडिटर कोऑपरेटिव सोसाइटी पंचायत पद पर सिद्धार्थनगर में उन्हें नौकरी मिल गई. फिर वहां से उनका नौकरी करने का सिलसिला जारी रहा. पिता का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने इतना मेहनत किया कि 2005 में सहायक संयोजक अधिकारी कुशीनगर में बन गए. काम करने में इतना मन लगा कि 2006 में नायब तहसीलदार पद पर उनकी प्रोन्नति हो गई और कानपुर में चले ग

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