पीलीभीत में जंगली जानवरों और इंसानों के संघर्ष को रोकने के लिए 'बाघ एक्सप्रेस' नामक एक अभियान चलाया जा रहा है. गाड़ी ग्रामीणों को बाघ हमले से बचने के उपायों के बारे में जागरूक कर रही है.
उत्तर प्रदेश के तराई में कई जिले ऐसे हैं जो इंसान ों और जंगली जानवर ों के संघर्ष से जूझ रहे हैं. पीलीभीत भी इनमें से एक है, यहां सबसे अधिक मामले बाघ और तेंदुए के हमले के देखे जाते हैं. लेकिन इसके पीछे का कारण कहीं न कहीं जाने-अंजाने में की गई इंसान ी लापरवाही है. इसी की रोकथाम के लिए इन दिनों पीलीभीत में ‘ बाघ एक्सप्रेस ’ दौड़ाई जा रही है. आमतौर पर एक्सप्रेस गाड़ियां प्रमुख स्टॉप्स पर रुकती हैं. लेकिन पीलीभीत में दौड़ रही ‘ बाघ एक्सप्रेस ’ हर छोटे-बड़े गांव में रुक कर ग्रामीणों को टिप्स दे रही है.
दरअसल, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के तमाम गांव और इलाके ऐसे हैं जो इंसानों और जंगली जानवरों के संघर्ष के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं. अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पीटीआर की घोषणा के बाद से वर्ष 2014 से अब तक इंसानों और जंगली जानवरों के संघर्ष में अब तक 45 से भी अधिक इंसानों की जान जा चुकी है. वहीं पीलीभीत के मटैना गांव में एक बाघिन को ग्रामीणों ने लाठी-डंडों से पीटकर उसे मौत के घाट उतार दिया था. क्या है ‘बाघ एक्सप्रेस’? अगर कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो इन घटनाओं में से अधिकांश खेत पर काम करने के दौरान की हैं. इन्हीं घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए पीलीभीत टाइगर रिजर्व और टीएसए इंडिया (टर्टल सर्वाइवल अलायंस) द्वारा मिल कर गांव-गांव में ‘बाघ एक्सप्रेस’ का संचालन किया जा रहा है. एक गाड़ी को ‘बाघ एक्सप्रेस’ की शक्ल दे कर ऐसे गांवों में घुमाया जा रहा है जो इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष के लिहाज से संवेदनशील है. ऐसे किया जा रहा किसानों को जागरूक इन गांवों में ‘बाघ एक्सप्रेस’ से बाघ के हमले से बचने के उपायों का प्रचार कराया जा रहा है. वहीं नुक्कड़ नाटक और शॉर्ट फिल्मों के जरिए ग्रामीणों को खेतों पर काम करने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों को लेकर जागरुक किया रहा है. पूरे मामले पर अधिक जानकारी देते हुए पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि किसानों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. बाघ एक्सप्रेस भी इसी क्रम में की गई कवायद है
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