बनवारी लाल गोयल हत्या दोषियों को पकड़ने की गुहार

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बनवारी लाल गोयल हत्या दोषियों को पकड़ने की गुहार
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कारोबारी बनवारी लाल गोयल की हत्या के मामले में विकलांग दंगों के शिकार परिवार को न्याय की उम्मीद है। 1987 के दंगों में उनके पिता की हत्या कर दी गई थी।

बताया कि इस दौरान उनके पिता बनवारी लाल गोयल अपने रसोइया समेत कई लोगों के साथ फैक्टरी की दूसरी मंजिल पर छिपे हुए थे। लेकिन, हिंसक भीड़ ने तलाशकर उनके पिता समेत कई लोगों की हत्या कर दी। उनका रसोइया हरिद्वार लाल गंभीर रूप से घायल हुआ था जबकि रसोइये के भाई ऋषि की भी हत्या कर दी गई। पहले हिंदुओं को निर्ममता के साथ काटा गया। इसके बाद टायर, मिट्टी का तेल और पेट्रोल डालकर जिंदा लोगों को जला दिया गया। जिसके बाद उन्होंने संभल छोड़ दिया और परिवार के साथ दिल्ली में जाकर बस गए थे। हत्या कर रिपोर्ट दर्ज

कराई पर नहीं पकड़े गए आरोपी, अब जगी उम्मीद कारोबारी बनवारी लाल गोयल की हत्या के मामले में रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी। मामले में लंबे समय तक जांच चलती रही, लेकिन कोई आरोपी जेल नहीं गया। इस मुकदमे को विनीत कुमार गोयल के चचेरे भाई ओमप्रकाश गर्ग एडवोकेट ने लड़ा। लेकिन, 1993 में ओमप्रकाश गर्ग का भी निधन हो गया। खौफजदा गवाह भी अपनी गवाही देने नहीं पहुंचे। बृहपतिवार को खग्गू सराय मंदिर पर पूजा-अर्चना करने पहुंचे विनीत कुमार गोयल का कहना है कि उन्होंने डीएम और एसपी से मिलकर इंसाफ की गुहार लगाई है। आज भी उम्मीद है कि उन्हें न्याय मिलेगा। भीड़ को देखकर जान बचाकर भागना पड़ा दंगे को बेहद करीब से देखने वाले रविंद्र गोयल वर्तमान में मुरादाबाद रहते हैं। उनका कहना है कि कारोबारी बनवारी लाल गोयल के पास ही उनकी आढ़त थी। जिस समय बनवारी लाल गोयल की हत्या कर उनकी फर्म में आग लगाई गई तब वह उनके पास में ही अपनी आढ़त पर थे। भीड़ को देखकर हमने अपने कर्मचारियों को घर भेज दिया। बाद में आढ़त को बिना बंद किए वहां से जान बचाकर भागना पड़ा। मृतक बनवारी लाल गोयल की भांजी नीमा गोयल बताती हैं कि जिस समय दंगा हुआ उस दौरान उनके पति रवि गोयल भी मामा बनवारी लाल गोयल के साथ थे। दोनों साथ छिपे हुए थे। भीड़ को अपनी तरफ आता देखकर रवि गोयल ने पुलिस चौकी की शौचालय में छिपकर जान बचाई थी। बनवारी लाल गोयल नेक इंसान थे, हिंदू-मुस्लिम को एक नजर से देखते थे नीमा गोयल बताती हैं कि उनके मामा बनवारी लाल गोयल बेहद नेक इंसान थे। वह हिंदू और मुस्लिम को एक नजर से देखते थे। उन्हें उम्मीद भी नहीं थी की कोई उनके साथ ऐसा करेगा। उन्हें लगता था कि शहर में अच्छी पहचान होने के कारण इस हिंसा में उनके साथ भी कुछ नहीं होगा। मगर, वह सब गलत थे।

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