भांग: नशा से औषधि तक, भारत में पहाड़ी क्षेत्रों में एक बहुउद्देशीय पौधा

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भांग: नशा से औषधि तक, भारत में पहाड़ी क्षेत्रों में एक बहुउद्देशीय पौधा
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यह लेख भांग के औषधीय गुणों और पहाड़ी क्षेत्रों में इसके विभिन्न उपयोगों पर प्रकाश डालता है. भांग के रेशों से चप्पल, रस्सियों और कपड़ों का निर्माण किया जाता है. इसके बीज, सर्दियों में औषधि के रूप में उपयोग किए जाते हैं और कैनाबाइडियॉल (सीबीडी) के कारण कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स को कम करने में मदद करता है.

भांग को अधिकांश लोग नशा ही समझते है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पौधा कई सारे औषधीय गुण ों से भरपूर है. ऐसे में इस पौधे के इस्तेमाल से पहाड़ी क्षेत्र ों में कई सारी चीजें भी बनाई जाती हैं. भांग के पौधे के तने से रेशे निकल कर इसे सुखाया जाता है. इसके रेशे बेहद मजबूत होते हैं, जिनसे ग्रामीण इलाको में पैर में पहनने वाली चप्पल जिसे पुले कहते हैं , और रस्सियों का निर्माण किया जाता रहा है. ऐसे में यह रेशा बहुत ही सॉलिड होता है, जिससे बनी रस्सी से ग्रामीण भारी से भारी सामान भी आसानी से उठा सकते हैं.

भांग के बीज को पहाड़ी भाषा में मंगोलू कहा जाता है. इन्हें सर्दियों में ग्रामीणों द्वारा दवाई के तौर पर लिया जाता है. मंगोलू के कुछ दानों को आटे और गुड के साथ मिला कर इससे लाडू बना कर सेवन करने से सर्दियों के पहाड़ी लोगों की इम्युनिटी स्ट्रांग रहती थी. औषधीय गुण वाले भांग के पौधे में कैनाबाइडियॉल (सीबीडी) मौजूद होता है, जो कीमोथेरेपी के साइडइफेक्ट्स को कम करता है. ऐसे में भांग से बनाई दवाएं इन मरीजों के लिए लाभकारी सिद्ध होती है. भांग के रेशों से इन दिनों कपड़ा बनी बनाया जा रहा है. इससे बनाए कपड़े न साइड मजबूत होते है, बल्कि उनकी चमक भी हर इस्तेमाल के बाद बेहतरीन रहती है. जहां कॉटन के बने कपड़े धोने के बाद पुराने लगने लग जाते है वाई दूसरी तरफ भांग के रेशों से बने कपड़े में धोने के बाद भी नई सी चमक रहती है

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