भारत और अमेरिका के संबंधों का विश्लेषण करता है, जो 'अमेरिका फर्स्ट' नीति, रूसी तेल, ईरान संबंध और दक्षिण चीन सागर में गतिविधियों जैसे मुद्दों से जटिल हैं।
भारत - अमेरिका के संबंधों के कई आयाम हैं। अमेरिका स्वयं को दुनिया का सिरमौर राष्ट्र मानता है और कई दशकों से उसकी नीतियां ' अमेरिका फर्स्ट' की पॉलिसी से संचालित होती रही हैं। अमेरिका फर्स्ट यानी कि दुनिया में कहीं कुछ भी हो रहा हो अगर उससे अमेरिकी हित प्रभावित होता है तो ऐसा करने वाला देश, एजेंसी या संस्था, अमेरिका के खिलाफ है।\2001 में 9/11 अटैक के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश का ये वाक्य बहुत चर्चित हुआ था जब उन्होंने कहा था- 'या तो आप हमारे साथ हैं या फिर हमारे खिलाफ।' हालांकि बुश
का यह बयान आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के संदर्भ में है, लेकिन कमोबेश यही अमेरिकी नीति रही है। यही वजह है कि अगर भारत रूस से सस्ता तेल खरीदता है तो अमेरिका को दिक्कत है क्योंकि इससे रूस की इकोनॉमी को ताकत मिलती है। लेकिन अमेरिका को ये डील पसंद नहीं है क्योंकि एक ताकतवर रूस अमेरिकी प्रभुत्व को चैलेंज करता है।\यही वजह है कि भारत-ईरान संबंध का प्रगाढ़ होना अमेरिका को पसंद नहीं है क्योंकि अमेरिका ईरान को अपना दुश्मन मानता है। लेकिन जब दक्षिण चीन सागर में भारत, चीन के वर्चस्व को चुनौती देते हुए वियतनाम से संबंध मजबूत करता है तो अमेरिका को भारत-वियतनाम का ये दोस्ताना अच्छा लगता है। ये अमेरिकी विदेश नीति का विचित्र चरित्र है जहां वो दूसरे देशों के रिश्तों को भी अपने लाभ-हानि के प्रिज्म से देखना चाहता है और वो उसे मानमाफिक हांकना चाहता है। कुछ ही घंटों में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी समकक्ष राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आमने-सामने होंगे तो इन तमाम मुद्दों पर बात होगी। ये मुद्दे दोनों देशों के बीच सहयोग और मतभेदों को दर्शाते हैं
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