भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की दुबई में हुई बैठक से पाकिस्तान में चिंता जगी है.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बुधवार को दुबई में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ बातचीत की. यह किसी भारतीय विदेश सचिव और तालिबान के किसी वरिष्ठ अधिकारी के बीच पहली आधिकारिक रूप से स्वीकृत बैठक थी. यह मीटिंग ऐसे समय में हुई है, जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंध बेहद तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं. भारतीय विदेश सचिव और तालिबान के विदेश मंत्री की मुलाकात से पाकिस्तान को तगड़ी मिर्ची लगी है और यह बैठक इस्लामाबाद को टेंशन दे सकती है.
इस बैठक के बाद हर किसी के मन में सवाल आ रहा है कि आखिर भारत क्यों तालिबान के साथ बातचीत को तैयार हुआ? इसके पीछे 5 कारण हो सकते हैं. हालांकि, भारत ने तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है, लेकिन यह भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को सुरक्षित करने का एक प्रयास है, जिसमें कई गतिशील पहलू शामिल हैं.इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के उच्च स्तर पर बातचीत करने के पीछे पांच मुख्य कारण हो सकते हैं. पहला कारण- तालिबान का हितैषी और सहयोगी पाकिस्तान उसका विरोधी बन गया है. दूसरा- ईरान काफी कमजोर हो गया है. तीसरा- रूस अपना युद्ध लड़ रहा है. चौथा- अमेरिका और दुनिया व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी की तैयारी कर रही है. सबसे महत्वपूर्ण पांचवा कारण- चीन तालिबान के साथ राजदूतों का आदान-प्रदान करके अफगानिस्तान में अपनी पैठ बना रहा है. भारत ने अब तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. हालांकि, भारत अपने राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को देखते हुए स्थिति पर नजर रख रहा है. भारत जल्द ही इस निष्कर्ष पर पहुंच गया कि आधिकारिक मान्यता दिए बिना आधिकारिक जुड़ाव के स्तर को उन्नत करने का यह सही समय है या फिर अफगानिस्तान में वर्षों के निवेश को खोना होगा. सुरक्षा भारत की सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य चिंता है और किसी भी भारत विरोधी आतंकवादी समूह को अफगानिस्तान के क्षेत्र में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए
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