2024 के दूसरे हाफ में भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का दौर जारी है। वैश्विक बाजारों में गिरावट और विदेशी निवेशकों की बिकवाली से बाजार पर लगातार दबाव बना हुआ है। बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 5 ट्रिलियन डॉलर से नीचे आ गया है और निवेशकों ने बड़ी रकम का नुकसान झेलना पड़ा है।
भारत ीय शेयर बाजार का साल 2024 का पहला हाफ काफी अच्छा रहा था, लेकिन दूसरे हाफ में लगातार गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक बाजारों में गिरावट और विदेशी निवेशक ों की बिकवाली से बाजार पर लगातार दबाव रहा है, जिससे बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण भी 5 ट्रिलियन डॉलर से नीचे आ गया है। इसका सीधा असर निवेशक ों के रिटर्न पर भी दिखा है। पिछले 4 सत्रों में भी शेयर बाजार दबाव में ही रहा है और निवेशक ों ने 34.
69 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि बीएसई पर सूचीबद्ध सभी कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण अभी 4.81 ट्रिलियन डॉलर हो गया है, जो 13 मई 2024 के बाद सबसे निचला स्तर है। साल 2025 की शुरुआत में भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण 5.17 ट्रिलियन डॉलर था। इस लिहाज से 14 जनवरी तक इसमें 360 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है। अगर सितंबर, 2024 के आंकड़ों से देखें जब भारतीय बाजार का पूंजीकरण अपने टॉप लेवल 5.7 ट्रिलियन डॉलर पर था, तो तब से अब तक 890 अरब डॉलर (76.98 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान निवेशकों को हो चुका है। हर निवेशक ने कितने पैसे गंवाए? शेयर बाजार का पूंजीकरण करीब 77 लाख करोड़ रुपये नीचे आ चुका है। बीएसई के आंकड़ों से पता चलता है कि जून 2024 तक बाजार में करीब 16 करोड़ निवेशक थे। मान लें कि तब से अब तक इसमें 1 करोड़ निवेशकों की संख्या और बढ़ गई है तो इस लिहाज से हर निवेशक को औसतन 4,52,800 रुपये का नुकसान शेयर बाजार में हुआ है। इसमें छोटे और बड़े सभी निवेशकों को शामिल किया गया है और कुल नुकसान से उनका औसत निकाला गया है। कितने खराब हैं हालात? शेयर बाजार में आ रही गिरावट के पीछे के कारणों को देखें तो पता चलता है कि हालात कितने खराब हैं। केवल जनवरी महीने की बात करें तो अभी तक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPI) ने बाजार से 22 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा की निकासी की है। इसका सीधा असर घरेलू निवेशकों के सेंटिमेंट पर दिखा और बिकवाली से बाजार को नुकसान पहुंचा। डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी को देखें तो इसमें 2 साल की सबसे बड़ी गिरावट दिखी जो 58 पैसे रही। ब्रेंट क्रूड का भाव करीब 81 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है, जो भारत के आयात बिल पर सीधा असर डाल रहा है और महंगाई को फिर बढ़ा सकता है। कब तक है रिकवरी की उम्मीद? शेयर बाजार के ताजा समीकरण को देखें तो फिलहाल रिकवरी की जल्दी उम्मीद नहीं है। अमेरिका ने रूस पर नया प्रतिबंध लगा दिया तो ट्रंप के आने से टैरिफ वॉर को एक बार फिर बढ़ावा मिलता दिख रहा है। इन सभी का असर ग्लोबल ट्रेड पर दिखेगा जो सीधे तौर पर शेयर बाजार को भी नुकसान पहुंचाएंगे। पिछली तिमाही में भारत की विकास दर 6.4 फीसदी रही। आईएमएफ ने अगले कुछ साल तक विकास दर को 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, जबकि विश्व बैंक ने 6.7 फीसदी तो गोल्डमैन सॉक्स ने महज 6 फीसदी का अनुमान लगाया है। माना जा रहा है कि बजट में सरकार कुछ बड़ा ऐलान करती है तो बाजार में थोड़ी-बहुत रिकवरी आ सकती है। ऐसा न होने पर सेंटिमेंट सुधरने में करीब जुलाई तक का समय लग सकता है
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