मनरेगा बजट में स्थिरांक, घाटे में योजना चलती रहती

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मनरेगा बजट में स्थिरांक, घाटे में योजना चलती रहती
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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के लिए बजट आवंटन में इस बार कोई वृद्धि नहीं की गई है। योजना पहले से ही घाटे में चल रही है, और मजदूरों को समय पर वेतन न मिलने की समस्या बढ़ रही है।

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ( MGNREGA ) के लिए बजट आवंटन में इस बार कोई वृद्धि नहीं की गई है। नए वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए मनरेगा को 86,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो वर्ष 2024-25 के बजट आवंटन के बराबर है। यह योजना पहले से ही घाटे में चल रही है, और वित्तीय वर्ष 2023-24 में यह 9,754 करोड़ रुपये का घाटा जमा कर चुकी है। केंद्र सरकार का तर्क है कि मनरेगा एक मांग संचालित योजना है, और आवश्यकतानुसार इसमें अधिक धन आवंटित किया जा

सकता है। हालांकि, इस साल कोई अतिरिक्त बजट आवंटन नहीं किया गया है।यह रुझान चिंता का विषय है क्योंकि मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने और गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पिछले वर्षों में, योजना के तहत रोजगार के अवसरों में कमी आई है, और मनरेगा के तहत कार्यरत मजदूरों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। नियम के अनुसार, मनरेगा के तहत मजदूरों को 15 दिन के अंदर वेतन मिलना चाहिए, लेकिन सरकार के बजट प्रावधान के कारण यह समय सीमा का पालन करना संभव नहीं हो पा रहा है। मनरेगा के लिए आवंटित धन का एक बड़ा हिस्सा पिछले वर्ष के बकाया को चुकाने में चला जाता है, जिससे नए बजट में उपलब्ध धनराशि कम हो जाती है।इस संदर्भ में, मजदूर किसान शक्ति संगठन के फाउंडर सदस्य निखिल डे ने कहा, 'मौजूदा वित्तीय वर्ष में तीन महीने बाकी हैं, यह योजना पहले से ही घाटे में चल रही है। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि अगले तीन महीने तक मजदूरी का भुगतान और ज्यादा देर से होगा।' उन्होंने यह भी बताया कि इतनी कम राशि के कारण अगले वित्तीय वर्ष में योजना को सीमित कर दिया जाएगा। इकोनॉम‍िक सर्वे के अनुसार, अक्सर जब मजदूरों को रोजगार की जरूरत होती है तब उन्हें काम नहीं मिलता। मनरेगा के अनुसार, अगर किसी मजदूर को 15 दिन के अंदर काम नहीं दिया जाता तो उसे बेरोजगारी भत्ता मिलना चाहिए। लेकिन सर्वे से सामने आया कि 'काम की मांग तभी दर्ज की जाती है, जब वास्तव में रोजगार दिया जाता है।' यही कारण है कि मनरेगा में काम की वास्तविक मांग का आंकड़ा दर्ज ही नहीं होता

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