हिंदी हैं हम शब्द श्रंखला में आज का शब्द है 'मर्त्य', जिसका अर्थ है 'मनुष्य, शरीर'. यह परिचय मैथिलीशरण गुप्त की कविता के माध्यम से मनुष्यत्व, उदारता और परोपकार के मूल्यों को समझाता है.
' हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- मर्त्य, जिसका अर्थ है- मनुष्य, शरीर। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- वही मनुष्य है विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸ मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे¸ वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती¸ उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती। उसी उदार की सदा...
वही उदार है परोपकार जो करे¸ वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में| अनाथ कौन हैं यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबन्धु के बड़े विशाल हाथ हैं| अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸ समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े। परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸ अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी। रहो न यों कि एक से न काम और का...
मनुष्यत्व उदारता परोपकार मैथिलीशरण गुप्त हिंदी
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