गुरुवार को मौनी अमावस्या के दूसरे दिन संगम तट पर भक्तों का जनसैना उमड़ पड़ा। प्राचीन धर्मों के अनुसार, संक्रांति के दिन गंगा स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। मौनी अमावस्या के दूसरे दिन गुरुवार को पावन संगम समेत सभी स्थायी व अस्थायी घाट भक्त ों व स्नानार्थियों से सराबोर हुए दिखे। इनमें से बहुतायत उन लोगों की संख्या भी थी, जिन्होंने बुधवार को भारी भीड़ के कारण स्नान न करके गुरुवार को गुप्त नवरात्र की प्रतिपदा के फलस्वरूप स्नान को प्राथमिकता दी। भोर में लगभग तीन बजे शुरू हुआ स्नान क्रम दिन भर में चलता रहा। मेला प्रशासन ने दावा किया कि दिन भर में लगभग दो करोड़ छह लाख श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। गुरुवार को स्नान कर रहे
स्नानार्थियों के चेहरों पर लंबी यात्रा की थकान तो दिखी, मगर उनके उत्साह और उल्लास में कोई कमी नजर नहीं आई। संगम तट के साथ ही झूंसी व अरैल की तरफ बने कच्चे व पक्के स्नान घाटों पर भी विशाल जनसागर देखने को मिला। भक्तों के उल्लास-उमंग का आलम यह था कि रह-रह कर हर-हर महादेव, जय गंगा मइया, जय श्रीराम के उद्घोष लगा रहे थे। नागपुर से परिवार समेत आए मुकेश भगत ने बताया कि अरैल की ओर से प्रयागराज में प्रवेश करने के बाद भारी भीड़ के कारण उन्हें किला घाट पहुंचने में मुश्किल तो हुई, मगर पवित्र जलधारा में डुबकी लगाते ही उनमें नई ऊर्जा का संचार हुआ। 'ये हमारे जन्मों का फल तो है...' वहीं संगम नोज पर पानीपत से स्नान करने आए घनश्याम का कहना था कि ये हमारे जन्मों का फल तो है ही, साथ ही यह पुरखों के पुण्य कर्मों का फल है कि इस पवित्र अवसर का साक्षी बनने और पुण्य की डुबकी लगाने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ। राजस्थान के सीकर से आए रामअवतार चौधरी का भी यही मानना था। उन्होंने कहा कि गंगा के शीतल जल ने जैसे ही शरीर को स्पर्श किया, ऐसा लगा मानो सारी थकान और सारे व्यवधान पल भर में गायब हो गए। गुरुवार को स्नान करने के लिए देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं के साथ ही स्थानीय जनता की भी अपार भीड़ उमड़ी। कई भक्तों के पैरों में थे छाले कई भक्त लंबी यात्रा से थके हुए दिखे, उनके पैरों में छाले भी उभर आए मगर इन सभी अड़चनों को पार पाकर स्नान के उपरांत इन सभी के चेहरों पर अपार आस्था, सुकून और अलौकिक क्षण के साक्षी बनने का भाव दिखा। श्रद्धालुओं की अपार भीड़ देखते हुए प्रशासन भी विभिन्न घाटों पर मुस्तैद रहा
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