महाकुंभ मेले में वसंत पंचमी पर संगम वाच टावर की भक्ति और व्यवस्था का जादू देखने को मिला। उद्घोषकों की आवाजों से स्नानार्थियों को प्रेरित किया गया और खोए हुए लोगों को ढूंढने में मदद की।
जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। भोर करने को फूटती सूरज की लालिमा, एक तरफ पक्षियों का कलरव और दूसरी ओर स्नानार्थियों से पट चुकी संगम नोज की तिलभर जमीन। इसी मनोरम वासंतिक सुबह के साथ गूंजती आवाज.....
और भी भाई-बहनों को पुण्य कमाने का अवसर दें। स्नान कर चुके हैं तो घाट खाली कर दें, ओ पीली कोटी वाले बाबू साहब, ओ भैया, लाल रंग का झोला वाले बाबू, गंगा जी को प्रणाम कर लें यह पुण्य की धरा है मौका हाथ से न जाने दें, हां भैया जल्दी-जल्दी आप लोग भी नहाते जाएं घाट खाली करते जाएं। वसंत पंचमी के अवसर पर संगम वाच टावर से श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने की कला ही थी जिसके चलते मुख्य स्नान घाट पर किसी तरह का दबाव नहीं बनने पाया। पुलिस कर्मी और सिविल डिफेंस के स्वयं सेवी लगातार सीटियां बजाकर संगम और किलाघाट तक सक्रिय रहे। महाकुंभ मेला में बसंत पंचमी पर अमृत स्नान करने जाते पंच दशनाम जूना अखाड़ा के नागा संत।-गिरीश श्रीवास्तव समय के साथ स्नानार्थियों की संख्या बढ़ी तो लोग अपनों से बिछड़े भी। खोए हुए लोगों को मिलाने में भी संगम वाच टावर के उद्घोषकों की बड़ी भूमिका रही। उनके ही माइक से महिलाएं कभी अपनों को बुलाने के लिए रोईं तो कई पुरुषों ने पूरे धैर्य के साथ आवाज लगाई, मुंगरा बादशापुर वाले नीरज भैया, मैं शंकरलाल यहीं संगम वाच टावर पर हूं। जल्दी आ जाइये। रोती हुई एक महिला ने अपनों को पुकारा, ए गोटी के पापा...आए जाओ हम बहुत परेशान हैं। एक और आवाज गूंजती रही, रिंकी की मम्मी, प्रतापगढ़ पट्टी, यहीं आ जाओ 58 नंबर खंभे के पास। यहीं खड़े हैं हम। कहां चली गई? दरोगा जी, आप तो निराले हैं श्रद्धालुओं की भीड़ में एक उप निरीक्षक अपनी बाइक लेकर आ पहुंचे। इस बीच उद्घोषक की उन पर दृष्टि पड़ गई। उद्घोषक ने उनसे कहा, दारोगा जी, आप गाड़ी लेकर कहां आ गए, आप तो निराले हैं। चलिए गाड़ी पीछे ले जाइये। यहां श्रद्धालुओं में परेशानी पैदा न करें। उद्घोषक से शर्मिंदा होकर उप निरीक्षक ने अपनी गाड़ी मोड़ ली और वापस चले गए
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