26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों में शामिल पाकिस्तानी मूल के कैनेडियन डॉक्टर तहव्वुर राणा को भारत में फांसी की सजा का इंतजार है.
एक डॉक्टर को लोग भगवान का रूप मानते हैं, उसे संकटमोचक समझते हैं, क्योंकि डॉक्टरों का धर्म इंसान को जिंदगी देना होता है. लेकिन यह कहानी एक ऐसे डॉक्टर की है, जिसने आज से 27 साल पहले मुंबई में मौत बांटी. उसकी शैतानी साजिश के चलते मुंबई में 167 लोगों की जान चली गई. अब वक्त उस डॉक्टर का हिसाब करने जा रहा है. भारत की किसी जेल में फांसी का फंदा उसका इंतजार कर रहा है.यह कहानी है तहव्वुर राणा की, जो कभी पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर था और जिस पर 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों में शामिल होने का आरोप है.
यह हमला ऐसा था जिसे भारत कभी भुला नहीं सकेगा. 26 नवंबर की रात से लेकर 29 नवंबर की सुबह तक मुंबई में मौत का तांडव हुआ. पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते मुंबई आए दस आतंकियों ने शहर के प्रमुख रेलवे स्टेशन, पांच सितारा होटलों, अस्पताल और यहूदी सांस्कृतिक केंद्र को निशाना बनाया. उन दस आतंकियों में से केवल एक, अजमल कसाब, को जिंदा पकड़ा जा सका, जबकि बाकी नौ मुठभेड़ में मारे गए. हमलावर आतंकियों में से सिर्फ कसाब जिंदा पकड़ा गया था. अजमल कसाब पर भारत में मुकदमा चला, और 2012 में उसे फांसी की सजा दी गई. उस हमले के करीब एक साल बाद दो और नाम सामने आए, जो पूरी साजिश में शामिल थे. ये थे पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली और पाकिस्तानी मूल के कैनेडियन तहव्वुर राणा. इन दोनों को अमेरिकी एजेंसी एफबीआई ने शिकागो से गिरफ्तार किया था. हालांकि, गिरफ्तारी एक अन्य मामले में हुई थी. आरोप था कि ये पैगंबर की तस्वीर छापने वाले डेनमार्क के एक अखबार पर आतंकी हमले की साजिश रच रहे थे. हेडली से कड़ी पूछताछ के बाद मुंबई हमलों में उसकी भूमिका उजागर हुई. उसने खुलासा किया कि जिन ठिकानों पर हमले हुए, उनकी रेकी उसने खुद अमेरिका से पांच बार भारत आकर की थी. उसने यह भी बताया कि हमले की साजिश लश्कर-ए-तैयबा ने रची थी. मुंबई में अपनी पहचान छिपाने के लिए हेडली ने ताडदेव इलाके में 'फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज' नामक इमीग्रेशन कंपनी का दफ्तर खोल
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