मोहाली में फर्जी एनकाउंटर में हत्या के दोषी ठहराए गए दो पूर्व पुलिसवाले

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मोहाली में फर्जी एनकाउंटर में हत्या के दोषी ठहराए गए दो पूर्व पुलिसवाले
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पंजाब के मोहाली में दो पूर्व पुलिसवालों को 1992 में दो सिख जवानों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या का दोषी ठहराया गया है। दोनों पूर्व पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

चंडीगढ़: मोहाली में एक बड़ा फैसला आया है। दो पूर्व पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। ये दोनों 70 साल से ज़्यादा उम्र के हैं। इन पर 1992 में दो सिख जवानों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या का इल्ज़ाम था। एक जवान फौज में था और दूसरा किसान। दोनों पूर्व पुलिसवालों पर 2-2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। स्पेशल CBI जज राकेश कुमार गुप्ता ने कहा कि अगर जुर्माना नहीं भरा तो साढ़े तीन साल की और जेल होगी।मजीठा थाने के पूर्व SHO गुरबिंदर सिंह (72) और पूर्व ASI परशोतम सिंह (70) को शुक्रवार को दोषी

ठहराया गया। उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120-B और 218 के तहत सजा सुनाई गई है। मतलब ये हुआ कि उन्होंने मिलकर हत्या की साजिश रची और सरकारी रिकॉर्ड में गलत जानकारी दर्ज करवाई। फर्जी एनकाउंटर में मारा थाCBI के सरकारी वकील अनमोल नारंग ने बताया कि बलदेव सिंह उर्फ़ देबा और लखविंदर सिंह उर्फ़ लखा को 13 सितंबर 1992 को मजीठा और अमृतसर पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार डाला था। बताया था खूंखार आतंकीवकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि उस समय पुलिस ने दावा किया था कि दोनों खूंखार आतंकवादी थे। उन पर इनाम भी था। कई हत्या, जबरन वसूली और डकैती के मामलों में शामिल थे। इनमें तत्कालीन मंत्री गुरमेज सिंह के बेटे हरभजन सिंह उर्फ़ शिंदी की हत्या भी शामिल थी। गुरमेज सिंह बेअंत सिंह सरकार में मंत्री थे।सीबीआई जांच में एनकाउंटर मिला फर्जीजांच में पता चला कि देबा फौज में लांस नायक था और लखा किसान। CBI जांच में साबित हुआ कि देबा को 6 सितंबर 1992 को उसके घर से गिरफ्तार किया गया था। उसका घर बसेरके भैणी गांव में था। SI मोहिंदर सिंह और छेहरटा थाने के SHO हरभजन सिंह की टीम ने उसे पकड़ा था।लखा को 12 सितंबर 1992 को अमृतसर के प्रीत नगर में उसके किराए के मकान से गिरफ्तार किया गया था। उसके साथ कुलवंत सिंह नाम के एक आदमी को भी पकड़ा गया था। बाद में कुलवंत को छोड़ दिया गया। लखा सुल्तानविंड गांव का रहने वाला था, लेकिन अमृतसर शहर में रहता था। मजीठा थाने के SHO गुरबिंदर सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार किया था।गुरमेज सिंह के बेटे की हत्या में फर्जी फंसायाCBI ने अपनी जांच में पाया कि देबा और लखा को 23 जुलाई 1992 को मंत्री के बेटे की हत्या के मामले में झूठा फंसाया गया था। 13 सितंबर 1992 को दोनों को संसारा गांव के पास फर्जी मुठभेड़ में मार डाला गया। CBI ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों को गैरकानूनी ढंग से हिरासत में रखा गया था। पुलिस गाड़ियों की आवाजाही का कोई रिकॉर्ड नहीं था।1999 में सीबीआई ने दाखिल की चार्जशीटसुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 15 नवंबर 1995 को CBI ने केस दर्ज किया। 30 अगस्त 1999 को आरोप पत्र दाखिल किया गया। हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के कारण गवाहों के बयान 2022 के बाद दर्ज किए गए। पीड़ितों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि 37 गवाहों में से सिर्फ 19 के बयान दर्ज हो पाए, क्योंकि कई गवाह लंबी सुनवाई के दौरान मर गए।लंबी सुनवाई के दौरान कई आरोपियों की मौतलंबी सुनवाई के दौरान कई आरोपी भी मर गए। इनमें हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, परशोतम लाल, मोहन सिंह और जस्सा सिंह शामिल हैं। बाकी बचे आरोपियों तत्कालीन DSP एसएस सिद्धू, तत्कालीन CIA इंचार्ज चमन लाल, तत्कालीन SHO गुरबिंदर सिंह और ASI परशोतम सिंह पर मुकदमा चला।यह मामला पुलिस की बर्बरता और न्यायिक प्रक्रिया की देरी को उजागर करता है। दो निर्दोष लोगों की जान गई। उनके परिवारों को इंसाफ मिलने में दशकों लग गए। यह घटना हमें याद दिलाती है कि पुलिस को जवाबदेह बनाना कितना ज़रूरी है। ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। हमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को भी मजबूत करना होगा। ताकि पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके

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