रहाुल गांधी ने कांग्रेस की गलतियों को आरएसएस के उदय का कारण बताया। क्या वाकई 1990 के दशक में दलितों और पिछड़ों के हितों को नजरअंदाज करने से आरएसएस सत्ता में आ पाती?
नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बड़ा 'कबूलनामा' किया है। कबूलनामा ये कि कांग्रेस की गलतियों से आरएसएस मजबूत हुई। 1990 के दशक में अगर उसने दलितों और ओबीसी के हितों को नजरअंदाज नहीं किया होता तो आरएसएस कभी 'सत्ता' में नहीं आ पाती। तो क्या वाकई राहुल गांधी जो कह रहे हैं वो सच है? सबसे पहले जानते हैं कि राहुल गांधी आखिर कहा क्या है। उन्होंने दिल्ली में 'वंचित समाज: दशा और दिशा' कार्यक्रम में कहा, 'मुझे कहना पड़ रहा है कि पिछले 10-15
वर्षों में कांग्रेस को जो करना चाहिए था, वह नहीं किया। अगर कांग्रेस दलितों, पिछड़ों और अति पिछड़ों का भरोसा कायम रख पाई होती तो आरएसएस कभी सत्ता में नहीं आ पाती।'1990 के दशक की ही बात क्यों कर रहे राहुल गांधी? यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि राहुल गांधी 1990 के दशक की बात कर रहे हैं और उनके मुताबिक, उसी दौरान कांग्रेस ने दलितों और पिछड़ों की अनदेखी की थी। राहुल गांधी ने पीवी नरसिंह राव का नाम तो नहीं लिया लेकिन तथ्य ये है कि 1991-96 तक कांग्रेस के नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस के इतिहास का ये वो दौर था जब नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य सक्रिय राजनीति में नहीं था। 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई थी। 90 के दशक के आखिर में 1998 में सोनिया गांधी ने सियासत में कदम रखा और कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। इस तरह राहुल गांधी के बयान के गहरे सियासी मतलब भी हैं।1990 के दशक में देश की राजनीति ने ली करवटदरअसल, 1990 के दशक ने भारतीय राजनीति को हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया। ये वो दौर था जिसे 'मंडल' और 'कमंडल' का दौर कहा जा सकता है। और स्पष्ट रूप से कहें तो 80 के दशक के उत्तरार्ध और 90 के दशक के पूर्वाद्ध वाले दौर में भविष्य की राजनीति का बीज रोपा जा चुका था। वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके पिछड़ों के आरक्षण की शुरुआत की, वहीं राम मंदिर आंदोलन ने बीजेपी के उभार की स्क्रिप्ट रखी। कांग्रेस जबतक सत्ता में रही, उसने मंडल आयोग की रिपोर्ट को संसद में पेश नहीं होने दिया। इंदिरा गांधी की तरह ही राजीव गांधी ने भी जाति के आधार पर आरक्षण का विरोध किया। मंडल आयोग की रिपोर्ट पर जब संसद में चर्चा हो रही थी तब बतौर नेता प्रतिपक्ष राजीव गांधी ने उसका कड़ा विरोध किया था। मंडल पॉलिटिक्स की वजह से उत्तर भारत में जातिगत आधार वाली नई-नई पार्टियों का उदय हुआ, मसलन समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल। दूसरी तरफ बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन की आंच पर हिंदुत्व के मुद्दे को गरमाया। ब्राह्मण-बनिया की पार्टी की टैग से छुटकारा पाने के लिए उसने धीरे-धीरे सोशल इंजीनियरिंग पर काम किया। पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों को हिंदुत्व की छतरी तले एकजुट किया। संगठन और सरकारों में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया।राहुल गांधी की बातों में कितना दम?राहुल गांधी कांग्रेस के जनसमर्थन में गिरावट के लिए 1990 के समय काल को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन उस दशक की सियासी घटनाओं के बीज तो पहले ही पड़ गए थे। इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक ने आरक्षण का पुरजोर विरोध किया। इससे कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक रहे दलित, पिछड़े धीरे-धीरे पार्टी से छिटकने लगे। रही-सही कसर जातिगत आधार वाली पार्टियों के उदय ने पूरी कर दी। संबंधित राज्यों में कांग्रेस का कोर वोट बैंक उधर खिसक गया। अल्पसंख्यक मतदाता भी बीजेपी की उभार को रोकने के लिए कांग्रेस से छिटककर उन क्षेत्रीय पार्टियों की तरफ बढ़ गए जो बीजेपी को टक्कर दे या हरा सके। कांग्रेस के कमजोर होने की शुरुआत तो 1986 में राजीव गांधी की उस ऐतिहासिक गलती से हो गई जब उन्होंने प्रचंड बहुमत का इस्तेमाल शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में पलटने से की थी। शीर्ष अदालत ने शाह बानो नाम की मुस्लिम महिला के पति को आदेश दिया था कि वह उसे हर महीने गुजारा भत्ता दे। कट्टरपंथी बिदक गए। इसे मजहबी मामलों में दखल बताया। राजीव गांधी सरकार कट्टरपंथियों के आगे झुक गई और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद के बहुमत से पलट दिया। इसके बाद कांग्रेस पर 'मुस्लिम तुष्टीकरण' के आरोप लगे।'मुस्लिम तुष्टीकरण' के आरोपों से पीछा छुड़ाने के लिए राजीव गांधी ने एक और गलती कर दी। गलती हिंदू तुष्टीकरण की। उन्होंने अदालती आदेश पर 37 सालों से बंद अयोध्या के विवादित बाबरी ढांचे का ताला 1986 में खुलवा दिया। राजीव गांधी खुद अयोध्या पहुंचे। पूजा-पाठ की और विवादित स्थल के नजदीक ही राम मंदिर का शिलान्यास कर डाला। इसके बाद से बीजेपी ने इस मुद्दे को एक तरह से हाइजैक कर लिया और बाद में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चला दिया। आरएसएस या यूं कहें कि बीजेपी को असली ताकत तो यही से मिली थी। 1990 से कांग्रेस का प्रदर्शनएक बार 1990 के दशक से अबतक लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी नजर डाल लेते हैं। 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने 244 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। पार्टी ने 1996 में 140, 1998 में 141, 1999 में 114, 2004 में 145, 2009 में 206, 2014 में 44, 2019 में 53 और 2024 में 99 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। दिलचस्प बात ये है कि 2014 और 2019 में कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा जब पार्टी का मुख्य चेहरा खुद राहुल गांधी ही थे
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