याद करिए सरकार का दूसरा कार्यकाल जब किसान दिल्ली को घेर कर कई महीने बैठे रहे पर सरकार टस से मस नहीं हुई. बहुत बाद में सरकार ने 3 कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया. शाहीन बाग का धरना भी याद होगा पर सरकार ने झुकने का फैसला नहीं लिया . सीएए कानून जरूर कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया पर कानून वापस नहीं लिया गया.
लेटरल एंट्री पर केंद्र सरकार ने यू टर्न ले लिया है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि देश में कुछ महत्वपूर्ण पद गैर आईएएस ऐसे अनुभवी लोगों से भरे जाने चाहिए जो अपने जीवन में किसी खास फील्ड में तरक्की कर ऐसे अनुभव हासिल किए हों जैसा एक अफसर से संभव न हो सके. व्यवहारिक दृष्टिकोण से यह देश के लिए बहुत लाभदायक फैसला था. शायद यही कारण था कि कांग्रेस नेता शशि थरू र ने दलगत विरोध से ऊपर उठकर लैटरल एंट्री को देश की जरूरत बताया. पर शायद सरकार अपनी बातें आम लोगों तक पहुंचाने में सफल साबित नहीं हो रही है.
सहयोगी पार्टियों के समर्थन के बावजूद सरकार ने विपक्ष के विरोध के चलते बिल जेपीसी को भेज दिया. ये दोनो फैसले सरकार के ऐसे थे जिसे दबाव में लिया गया फैसला ही कहा जाएगा. सरकार चाहती तो बिल पास भी करवाती और लागू भी कर सकती थी. ऐसी परिस्थितियां नहीं बन रही थीं कि कहा जा सके कि चीजें सरकार के लिए नियंत्रण से बाहर हो रही थीं. याद करिए सरकार का दूसरा कार्यकाल, जब किसान दिल्ली को घेर कर कई महीने बैठे रहे पर सरकार टस से मस नहीं हुई. शाहीन बाग का धरना भी याद होगा पर सरकार ने झुकने का फैसला नहीं लिया.
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