विवाहेतर संबंध में बच्चे का कानूनी पिता पति ही होगा: सुप्रीम कोर्ट

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विवाहेतर संबंध में बच्चे का कानूनी पिता पति ही होगा: सुप्रीम कोर्ट
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सर्वोच्च न्यायालय ने विवाहेतर संबंध में पैदा हुए बच्चे का कानूनी पिता पत्नी के पति ही होने का फैसला सुनाया। यह फैसला कई लोगों को असहज महसूस करा सकता है, लेकिन न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह तभी लागू होता है जब पति-पत्नी की शादी चल रही हो और उनके बीच संबंध बना हुआ हो।

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह ेतर संबंधों के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। न्यायालय ने कहा कि यदि विवाह ित महिला किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाती है और उसका बच्चा होता है, तो फिर भी उसका कानून ी पिता महिला का पति ही होगा। यह फैसला कई लोगों को असहज महसूस करा सकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यह तभी लागू होता है जब पति-पत्नी की शादी चल रही हो और उनके बीच संबंध बना हुआ हो। यह मामला केरल से है, जहां एक विवाह ित महिला ने एक अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाया और उसके

बच्चे की मां बनी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पितृत्व और वैधता के बीच जटिल सवाल पर विचार किया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि ब्रिटेन, अमेरिका और मलेशिया जैसे देशों में भी वैधता की मान्यता को प्राथमिकता दी जाती है, हालाँकि जब पितृत्व पर संदेह होता है तो डीएनए परीक्षण की अनुमति भी दी जाती है। जस्टिस सूर्यकांत ने धारा 112 का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत यह एक मजबूत अनुमान है कि अगर विवाह के दौरान पत्नी किसी और के बच्चे की मां बनती है, तो भी पति ही बच्चे का कानूनी पिता होगा। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी बच्चे की पैदाइश को लेकर अनावश्यक जांच न हो। यदि कोई व्यक्ति अवैधता का दावा करता है, तो उसे इसे साबित करने के लिए महिला से दूर रहने का प्रमाण देना होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने 'संपर्क में न रहने' को भी परिभाषित किया है। 'संपर्क में न रहने' का मतलब है कि पति-पत्नी के बीच संबंध बनना असंभव था। इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति तब ही पितृत्व को चुनौती दे सकता है जब वह यह साबित कर सके कि उस समय उसे अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने का कोई उपाय नहीं था

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