शनिवार को भगवान शनि की पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन कठिन उपवास का पालन करें और शनि कवच का पाठ करें।
शनिवार को भगवान शनि की पूजा होती है। कहते हैं कि इस दिन छाया पुत्र की पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही शनि देव खुश होते हैं। ऐसे में इस दिन कठिन उपवास का पालन करें। सुबह उठकर पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं। इसके बाद शाम को पीपल के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं। उसकी 7 बार परिक्रमा करें। फिर वहीं, खड़े होकर ' शनि कवच ' का पाठ करें। पूजा का समापन आरती से करें। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन खुशहाल रहेगा। \ शनि कवच का पाठ इस प्रकार है: \अस्य श्री
शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्। चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।। श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्। कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।। कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्। शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।। ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:। नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।। नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा। स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।। स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:। वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।। नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा। ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।। पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:। अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।। इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:। न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।। व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा। कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।। अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे। कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।। इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा। जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।।।\ शनि देव की आरती।\जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय जय श्री शनि देव.... श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी। नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय जय श्री शनि देव.... क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी। मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय जय श्री शनि देव.... मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी। लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय जय श्री शनि देव.... जय जय श्री शनि देव.... देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी। विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥ जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।। जय जय श्री शनि देव...
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