मोहम्मद रफ़ी के गायन की यादों को ताजा करते हुए कहानी में शम्मी कपूर ने बताया कि रफ़ी ने उनके साथ कैसे सहयोग किया और कैसे उनकी आवाज़ ने उन्हें सफल बनाया।
इमेज कैप्शन, बर्फ़ीली पहाड़ियों पर दिल खोल कर खुल्लम-खुल्ला प्यार का इज़हार करते शम्मी कपूर को जब 'याहू... चाहे कोई कोई मुझे जंगली कहे...' गाने के लिए आवाज़ चाहिए थी, तो वह अल्हड़ बाँकपन रफ़ी की आवाज़ में मिला. जब इश्क़ के रूहानी रूप की बात आती है तो रफ़ी एक क़व्वाली को आवाज़ देते हैं- ये इश्क़ इश्क़ है, इश्क़ इश्क़... इश्क़ आज़ाद है, इश्क़ आज़ाद है, हिंदू न मुसलमान है इश्क़. ये वही रफ़ी हैं जिनका गाया 'मन तपड़त हरि दर्शन को आज...' आज भी भक्ति रस के लिए याद किया जाता है.
यही नहीं, पर्दे पर गुरु दत्त जब भारत की हक़ीकत और हुकूमत दोनों से बेज़ार हो जाते हैं, तो ये रफ़ी ही हैं जो गाते हैं, 'जिन्हें नाज़ है हिंद पर, वो कहाँ हैं...'यहाँ क्लिक करेंएक वक़्त था जब फ़िल्मों के हिट गाने का मतलब मोहम्मद रफ़ी होता था. उनके न रहने के सालों बाद भी लोग उनकी आवाज़ और दिल जीत लेने वाले अंदाज़ के क़िस्से सुनाते नहीं थकते. इसकी एक मिसाल शम्मी कपूर के क़िस्सों में मिलती है. कहा जाता है, जैसे मुकेश राज कपूर की आवाज़ थे, वैसे ही मोहम्मद रफ़ी शम्मी कपूर की आवाज़ थे. सुजाता देव की किताब 'मोहम्मद रफ़ी- ए गोल्डन वॉयस' में शम्मी कपूर याद करते हैं, 'हम लोगों को 'तारीफ़ करूँ क्या उसकी...' गाना रिकॉर्ड करना था. रात भर मैं सो नहीं पाया. मैं चाहता था कि ये जुमला बार-बार दोहराया जाए और फिर गाने का अंत हो. लेकिन संगीतकार ओपी नैय्यर को मेरी सलाह पसंद नहीं आई.' 'मेरी निराशा देखकर रफ़ी ओपी नैय्यर से बोले- पापा जी, आप कंपोज़र हो. मैं गायक हूँ पर पर्दे पर तो शम्मी कपूर को ही एक्टिंग करनी है. उन्हें करने दो. अगर अच्छा नहीं लगेगा तो हम दोबारा कर लेंगे. रफ़ी साहब ने वैसे ही गाया, जैसा मैंने सोचा था.' शम्मी कपूर बताते हैं, 'जब ओपी नैय्यर ने गाना देखा तो मुझे बाँहों में भर लिया और दुआएँ दीं. रफ़ी साहब ने अपनी शरारती पर नरम आवाज़ में कहा-अब बात बनी न? रफ़ी साहब चुटकी में दिल जीत लेते थे. मैं मोहम्मद रफ़ी के बग़ैर अधूरा हूँ.'मुझे मशहूर गायक मन्ना डे का एक बहुत पुराना इंटरव्यू हमेशा याद आता है. इसमें तब के पत्रकार राजीव शुक्ला के सवाल पर उन्होंने कहा था, 'रफ़ी साहब नंबर वन थे. मुझसे बेहतर. मैं अपनी तुलना सिर्फ़ रफ़ी से करता हूँ. जैसा वह गाते थे, शायद ही कोई गा पात
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