Madhya Pradesh (MP) Shajapur Road Accident; Victim Teacher Bhupendra Rathore Story.
अंतिम संस्कार भी न कर सका, किडनी-आंखें दान कर दीं, ताकि यादें जिंदा रहेंमैं भूपेंद्र राठौर, मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले का रहने वाला हूं। 2 महीने पहले मेरी पत्नी की मौत हो गई। मैं वो अभागा पति हूं, जो अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाया। मैंने उसके आखिरी सफर में जैसे-तैसे उसे सिंदूर और बिंदी लगाई, लेकिनएक स्ट्रेचर पर लाल रंग की साड़ी में लिपटी उसकी डेड बॉडी पड़ी थी। लोगों के लिए यह एक मृत शरीर हो सकता था, लेकिन मेरे लिए तो मेरी पत्नी, मनीषा थी। जिससे मैं उस वक्त से प्यार करता...
भूपेंद्र राठौर अपनी पत्नी मनीषा राठौर की डेड बॉडी की तस्वीर देख रहे हैं। अंग दान करने के बाद उनकी पत्नी को लाल कपड़े पहनाए गए थे। रास्ते में मेरी पत्नी ने कहा किसी ढाबे पर रुककर चाय पीते हैं। मैं उसे डॉक्टर से दिखाने के लिए कई बार इंदौर गया हूं, लेकिन आज तक उसने रास्ते में रुक कर चाय पीने के लिए कभी नहीं कहा था। हम लोग रुके। हमने चाय पी, उसने एक एक्स्ट्रा चाय भी मंगाई। मुझे नहीं पता था कि यह चाय हमारी साथ की आखिरी चाय होगी। जिस दिन की शुरुआत हर रोज साथ में बैठकर चाय पीने से होती थी। वह चाय पर ही खत्म हो गई।
7 नवंबर की बात है। घरवाले तो कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे। डॉक्टर ने बोला कि आपकी पत्नी ब्रेनडेड हो गईं थीं और अब इस दुनिया में नहीं रहीं। मैं ये सुनते ही फूट-फूट कर रोने लगा। सोचने लगा कि इस आखिरी सफर में भी अगर साथ में ही दुनिया को अलविदा कहते तो आज मैं अकेला न होता। मेरी पत्नी की किडनी मध्य प्रदेश के मंदसौर में रहने वाली एक महिला को लगाई गई। वो महिला 7 साल से डायलिसिस पर थी। उसकी 4 बेटियां हैं। एक व्यक्ति को मेरी पत्नी की दोनों आंखें लगाई गईं।
कमरे में जाता हूं, तो सबसे छिपकर रो लेता हूं। उसने जो नमकीन बनाई थी वो अभी तक बची हुई है, कभी-कभी खा लेता हूं। किसी दूसरे को नहीं खाने देता हूं। लगता है कि यह कभी खत्म न हो। इसी दिवाली की बात है। मेरा बेटा गुजरात के वडोदरा से घर आया था। मैंने नहीं बताया था कि बेटा आ रहा है। हम सरप्राइज देना चाह रहे थे। जैसे ही सुबह के 4 बजे मैं उसे स्टेशन से घर लेकर आया, वह घर के बालकनी में खड़ी थी। पता नहीं कैसे, उसे आभास हो गया था।
3 साल बाद घरवालों की रजामंदी से शादी हुई। मैं उस वक्त एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था। वहां से मनीषा के लिए चिट्ठी लिखता था। कई सारे वादे करता था। आज भी वो सारे लेटर उसने संभालकर रखे थे। जब भी हमारे बीच कुछ कहासुनी होती- वह कहती, मैं लेटर लाकर दिखाती हूं। आपने ये वादा किया था… हम दोनों हंसने लगते थे।
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