वैसे तो लोकतंत्र में चुनाव किसी भी पद के लिए हो, उसे बुरा मानने का कोई कारण नहीं है। मगर लोकसभा अध्यक्ष का पद ऐसा है जिसमें आम राय को हमेशा तवज्जो दी जाती रही है। वजह यह है कि सदन के सुचारू संचालन के लिए अध्यक्ष को दोनों पक्षों का सहयोग चाहिए होता...
सत्तारूढ़ गठबंधन NDA की तरफ से ओम बिरला के मुकाबले विपक्षी प्रत्याशी के तौर पर के सुरेश के सामने आ जाने के बाद यह लगभग तय हो चुका है कि आजाद भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव होगा। अब तक लोकसभा अध्यक्ष का चयन आम राय से होता रहा है। हालांकि सदन में एनडीए की सदस्य संख्या को देखते हुए ओम बिरला का स्पीकर बनना तय माना जा रहा है।निरंतरता का संदेशअपने इस लगातार तीसरे कार्यकाल में जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी ने गृह, रक्षा, वित्त और विदेश जैसे सारे अहम मंत्रालयों में...
बिरला का समर्थन करने का इरादा जताया, पर उसका कहना था कि परंपरा के मुताबिक डेप्युटी स्पीकर का पद विपक्ष को मिलना चाहिए। सत्ता पक्ष की ओर से इस बात के लिए ना नहीं किया गया। इसके बावजूद अगर सहमति नहीं बन पाई तो इस पर निराशा ही जताई जा सकती है।दोनों पक्षों का सहयोगवैसे तो लोकतंत्र में चुनाव किसी भी पद के लिए हो, उसे बुरा मानने का कोई कारण नहीं है। मगर लोकसभा अध्यक्ष का पद ऐसा है जिसमें आम राय को हमेशा तवज्जो दी जाती रही है। वजह यह है कि सदन के सुचारू संचालन के लिए अध्यक्ष को दोनों पक्षों का सहयोग...
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