सारण के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर: समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने में योगदान

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सारण के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर: समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने में योगदान
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भिखारी ठाकुर समाज के कुरीतियों को मिटाने के लिए संगीत और नाटक का इस्तेमाल करते थे.

छपरा. सारण के मशहूर कलाकार भिखारी ठाकुर शिक्षा तो कम हासिल कर सके, लेकिन समाज में फैल रहे कुरीतियों से भलीभांति अवगत थे. समाज से इन कुरतियों को मिटाने के लिए उन्होंने संगीत और नाटक का सहारा लिया. अपनी गायकी और नाटक के जरिए लोगों को जागरूक करने का काम करते थे. भिखारी ठाकुर महज एक लोक कलाकार ही नहीं बल्कि जिले की पहचान हैं.

भले ही आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन, उन्होंने विभिन्न विधाओं के माध्यम से समाज में फैली विकृतियों के खिलाफ जो जंग छेड़ा था, वह आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है और समाज में परिवर्तन भी आया है. उनकी प्रासांगिकता आज भी बरकरार है. बंगाल के नवजागरण से प्रभावित होकर भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी क्षेत्र में प्रचलित बेमेल विवाह, नशापान, स्त्रियोंं की दुर्दशा, सामंती जोर-जुल्म के खिलाफ नाटकों के माध्यम से जागरुकता फैलाने की उन्होंने काम किया. साधारण परिवार में भिखारी ठाकुर का हुआ जन्म भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को सारण जिले के छपरा सदर प्रखंड स्थित कुतुबपुर दियारे में एक साधारण नाई परिवार में हुआ था. उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर और माताजी का नाम शिवकली देवी था. गांव में पलने बढ़ने के बाद वे जीविकोपार्जन के लिए गांव छोड़कर खड़गपुर पश्चिम बंगाल चले गए. वहां उन्होंने काफी पैसा कमाया, लेकिन वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे. भिखारी ठाकुर की रामलीला में उनका मन बस गया था. इसके बाद वे जगन्नाथ पुरी चले गए. वहां भी मन ना लगा तो अपने गांव वापस आ गए .भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का पहला दलित विमर्श का चिंतक माना जाता है. उनके नाटकों के पात्र एवं नाटय दल के कलाकार प्रायः दलित एवं पिछड़े समुदाय के लोग ही होते थे. सवर्ण समुदाय के लोग उपेक्षा से उन्हें नचनिया कहा करते थे. समाज में फैली कुरीतियों से लोगों को करते थे जागरूक डॉ. वीरेंद्र नारायण यादव ने बताया कि साहित्य रचना और कला के माध्यम से भिखारी ठाकुर मनोरंजन के साथ-साथ समाज में हो रहे कुरीतियों पर चोट करने की काम करते थे. नाटक और अपनी गायकी के माध्यम से लोगों को जागरुक करते थे. उन्होंने बताया कि भिखारी ठाकुर सारण ही नहीं बल्कि भोजपुरी समाज के एक बड़े लोक कलाकार थे. अपनी रचना से सिर्फ मनोरंजन ही नहीं कराया बल्कि समाज को बदलने का भी काम किया ह

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