सुप्रीम कोर्ट में पिता के शव को ईसाई रीति से दफनाने के लिए लड़ाई

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सुप्रीम कोर्ट में पिता के शव को ईसाई रीति से दफनाने के लिए लड़ाई
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छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले एक व्यक्ति को अपने पिता के शव को ईसाई रीति से दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। ग्रामीणों ने धर्म परिवर्तन करने के कारण विरोध जताया और पुलिस ने दफनाने से रोक दिया।

सुप्रीम कोर्ट में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया. सुभाष बघेल के शव 12 दिनों से मुर्दाघर में पड़ा है. गांववालों दफनाने से रोक दिया. बेटा दर-दर भटकता रहा. आखिर में मामला सुप्रीम कोर्ट तक आया. बताया जा रहा है कि गांववाले इसलिए भड़के हैं क्योंकि परिवार ने धर्मांतरण कर ईसाई धर्म अपना लिया था.

याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने उसके पादरी पिता के शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों को दफनाने के लिए निर्धारित स्थान पर दफनाने की इजाजत न देते हुए याचिका निस्तारित कर दी थी.आज पीठ ने कहा, ‘किसी व्यक्ति को जो किसी विशेष गांव में रहता है, उसे उसी गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव सात जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा है. यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए उच्चतम न्यायालय आना पड़ा.

बघेल का पक्ष रखने के लिए अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य द्वारा प्रस्तुत हलफनामे से स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता के परिवार के अन्य सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया है. गोंजाल्विस ने हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि मृतक को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही है, क्योंकि वह ईसाई था.

मेहता ने कहा कि मृतक का बेटा आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए शव पैतृक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने पर अड़ा हुआ है. गोंजाल्विस ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि यह ईसाइयों को बाहर निकालने के आंदोलन की शुरुआत है. मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर भावनाओं के आधार पर निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए और वह इस मामले पर विस्तार से बहस करने के लिए तैयार हैं.

मेहता द्वारा समय मांगे जाने पर शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी के लिए स्थगित कर दी. ग्राम पंचायत के सरपंच ने प्रमाण पत्र जारी किया था कि गांव में ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है. इस आधार पर उच्च न्यायालय ने मृतक के बेटे को पिता का शव उक्त गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और कहा कि इससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है. पादरी की वृद्धावस्था की वजह से मौत हुई थी.

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