AAP की दिल्ली विधानसभा में भारी हार के पीछे केजरीवाल की कथनी-करनी का अंतर, लकदक जीवनशैली, भ्रष्टाचार के आरोप और तानाशाहीपूर्ण नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. इस हार के कारणों का विश्लेषण करते हुए यह बताया गया है कि कैसे केजरीवाल की छवि आम आदमी से खास की ओर बदल गई और जनता का उन पर मोहभंग हुआ.
AAP की दिल्ली विधानसभा में बड़ी हार ने कई एक्सपर्ट को चौंका दिया है. विश्लेषण करें तो AAP सुप्रीमो केजरीवाल भी इसके पीछे एक बड़ा कारण नज़र आते हैं. केजरीवाल की कथनी और करनी के बीच बड़ा अंतर...आम आदमी की इमेज पोट्रे करने के बाद लकदक लाइफ स्टाइल की चाहत... 40 करोड़ के खर्च से बना ` शीशमहल ` जैसा आलीशान सरकारी बंगला... देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के बड़े-बड़े दावों के बीच शराब घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के छींटे...इन सभी बातों से मतदाता का मोहभंग होता दिखाई दिया.
केजरीवाल की तानाशाहीपूर्ण नेतृत्व शैली, अड़ियल रवैया जैसी बातें भी उनकी हार के लिए कम जिम्मेदार नहीं दिखाई दे रही हैं. Advertisementवहीं, केजरीवाल जैसी ही एक और जिद्दी नेता बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से उनकी तुलना करें तो साफ समझ में आता है कि ममता बनर्जी ने अपनी समस्त कमजोरियों के बावजूद भी माटी-मानुष वाली अपनी आम महिला की छवि से समझौता नहीं किया. किसी भी तरह की लग्जरी से परहेज किया. सूती साड़ी में आम बंगाली महिला को रीप्रसेंट करती रहीं. किसी भी बड़े मेहमान के आने पर बहुत साधारण से घर-कॉमन से ड्राइंगरूम में उसका स्वागत करती दिखाई दीं. निचले या मध्यवर्गीय आम मतदाता को उनमें अपना अक्स दिखाई देता रहा. महिलाओं में वे दीदी की छवि लिए रहीं. बहुत मेहनत से गढ़ी गई इस इमेज को उन्होंने किसी भी कीमत पर गंवाने का रिस्क नहीं लिया. जबकि आप की हार के दूसरे कारणों के अलावा केजरीवाल की कथनी करनी का अंतर, आम से खास की दिशा में हुआ यह चमत्कारी बदलाव ही पार्टी पर भारी पड़ा. यही बात उनके या आप के लॉयल मतदाताओं को नागवार गुज़री. आइए पॉइन्ट वाइज़ समझते हैं. कैसे मात खा गए केजरीवाल वहीं, वैसे ही तेवर लिए बंगाल की सत्ता पर कैसे लगातार काबिज़ हैं ममता दीदी....Advertisementलार्जर देन लाइफ वाली आम आदमी की छवि • केजरीवाल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत `आम आदमी ` के नारे और साधारण जीवनशैली के साथ की थी. सूती शर्ट, जेब में सस्ता पेन, सस्ती सी वैगन आर कार, छोटा सा फ्लैट, कोई बॉडी गार्ड नहीं लेने की बात, कोई सिक्योरिटी नहीं लेने का दावा, गाड़ियों का काफिला....सीएम के रूप में मेट्रो में यात्रा से शुरुआत करके फिर शीशमहल तक पहुंचने का सफर शायद लोगों का उनके प्रति मोहभंग करने के लिए काफी था. • उनकी पार्टी का नाम ही `आम आदमी पार्टी ` (AAP) था, जो आमजन के साथ उनकी पहचान को दर्शाता था. लेकिन यह आम पहचान कब खास में बदलती चली गई. इसका केजरीवाल को भी शायद भान नहीं रहा. या सयास उन्होंने ध्यान ही नहीं रखा. वे जनता को अपनी जेब में मानकर चल रहे थे या उन्हें अपनी फ्रीबीज़ योजनाओं पर इतना गुमान था कि वे इसके आगे बाकी सभी मुद्दों को गौण समझने की भूल कर बैठे.जो मतदाता को पसंद थी वही USP छोड़ी...• उनकी नीतियों और कार्यशैली में बदलाव आया, जिससे जनता की अपेक्षाओं और उनके कार्यों के बीच अंतर पैदा हो गया. पार्टी के लिए फंड एकट्ठा करने में सारा जोर लगाना. इसके लिए किसी भी तरह के तरीके अपनाना से पीछे नहीं हटना. इन सभी बातों पर उनका बहुत ज़ोर हो गया जबकि जनता ने उन्हें इसके विपरीत कारणों की वजह से चुना था. जनता की नज़र में वे आम आदमी थे. उनके पास संसाधन नहीं था. जनता उन्हें पॉलिटिक्स में चेंज लाने वाले नेता के तौर पर अपना समर्थन दे रही थी. लेकिन उन्होंने इसकी जगह बाकी पार्टियों वाला रास्ता अपनाने की कोशिश की जिससे जनता उनसे दूरी बनाने लगी.Advertisement• हाल के वर्षों में, उनकी छवि में 360 डिग्री परिवर्तन दिखाई दिया. जीवनशैली में लग्जरी का प्रवेश फिर शराब कांड फिर ने उनकी सादगी, आमजन वाली छवि को धूल-धूसरित करने में बड़ी भूमिका निभाई. • शीशमहल विवाद ने केजरीवाल की छवि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. यह आरोप लगा कि उन्होंने सरकारी संसाधनों का उपयोग अपने निजी लाभ के लिए किया. कई सरकारी घरों को गिरवाकर अपने लिए बड़ा बंगला बनवाने की कोशिश की. उसमें 40 करोड़ का सामान लगवा लिया. जनता ने उन्हें चुना ही इसीलिए था कि उन्हें अपने जैसे लगते थे. संसाधन विहीन लगते थे. लेकिन यह उम्मीद जगाते थे कि वे राजनीति की दिशा बदल देंगे. बदलाव की धारा बहा देंगे. लेकिन जितनी जल्दी उनकी छवि बदलती दिखी उससे आमजन को बहुत निराशा हुई. यही निराशा EVM में परिलक्षित होते हुए दिखाई दे रही है. • शराब घोटाला मामले ने भी उनकी कथनी करनी के बीच का अंतर लाकर सामने खड़ा किया. एक ऐसी पार्टी जिसका जन्म ही भ्रष्टाचार के आंदोलन पर हुआ हो उससे लोग इतनी जल्दी इतने पतन की उम्मीद नहीं लगाए थे. उन्हें बहुत चीट महसूस हुआ. • उनका दावा था कि वे राजनीति में नैतिकता और शुचिता की राजनीति करने आए हैं. लेकिन गोवा और गुजरात चुनावों में उन्होंने जिस तरह से पैसा खर्च किया. और उसे लेकर उन पर लगातार जो आरोपों लगे उनके लचर जवाबों ने उनके कट्टर समर्थकों को ही सवाल खड़े करने पर मजबूर कर दिया. Advertisement• विवाद लगातार होते रहे लेकिन वे इन्हें टेकिंग फॉर ग्रांटेड लेते रहे. भाजपा ने उन पर लगे आरोपों को हरचंद हर प्लेटफॉर्म पर फैलाने के प्रयास किए. इन विवादों ने जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता को बेहद कमोर कर दिया.• यह हार बताती है कि आप वादे करके तोड़ेंगे तो फिर जनता माफ नहीं करेगी. उनकी पॉपुलैरिटी जबर्दस्त थी. उनका आकर्षण अद्भुत था. लेकिन परिणाम बता रहे हैं कि जनता का मोहभंग होना केजरीवाल और आप के लिए घातक रहा. आप बड़े वादे करते हैं तो उसे निभाना आपकी जिम्मेदारी होती है. केजरीवाल की किसी दूसरी पॉलिटिकल पार्टी जैसी शैली अपनाने के कारण लोगों को लगने लगा कि वह अपने मूल सिद्धांतों से दूर हो गए हैं.मनमर्जी और हाइकमांड शैली• उन पर पार्टी को "हाइकमांड शैली" में चलाने और तानाशाहीपर्ण व्यवहार का आरोप लगा. पार्टी के बड़े से बड़े नेता भी पिछले कुछ समय में उनके इसी रवैया के कारण पार्टी से दूर होते गए या बाहर कर दिए ग
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