नए साल की शुरुआत में यानी 2025 के पहले ही महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली-एनसीआर के लोगों को रफ्तार के मामले में नया तोहफा दिया है. भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है, वहीं देश एक हजार किलोमीटर से ज्यादा मेट्रो लाइन के मामले में विश्व का तीसरे नंबर का देश बन गया है.
देश के महानगरों में जीवन शैली में बड़े बदलाव न सिर्फ दिखाई देने लगे हैं, बल्कि उनकी वजह से रफ्तार, साफ-सफाई और खूबसूरती बढ़ी है. जरा सोचिए कि राजधानी दिल्ली में अगर मेट्रो सेवा का इतना विस्तार नहीं हुआ होता, तो दिल्ली वालों को किन मुसीबतों से दो-चार होना पड़ता. मेरा दिल्ली आना 1988 में हुआ था. उस वक्त रोजमर्रा की भागमभाग के लिए औसत दिल्ली वासी डीटीसी और ऑटो रिक्शा पर निर्भर था. ऑटो महंगा विकल्प था. इसलिए ज्यादातर मध्यमवर्गीय लोग डीटीसी की बसों में धक्के खाने के लिए ही मजबूर होते थे.
लेकिन पहले कदम को साकार होने में ही करीब दो दशक लग गए. साल 1984 में भारत में पहली मेट्रो लाइन कोलकाता में शुरू हुई. यह एस्प्लेनेड और भवानीपुर के बीच 3.4 किलोमीटर लंबा रूट था. वर्ष 1995 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन यानी डीएमआरसी का गठन किया गया. इसका मकसद दिल्ली में विश्व स्तरीय मास रैपिड ट्रांसपोर्ट लाने के लिए किया गया था. इस प्रोजेक्ट को केंद्र और दिल्ली सरकार की भागीदारी से रफ्तार मिली.
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