SC से तीन तलाक मामले में केंद्र सरकार से जानकारी मांगी

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SC से तीन तलाक मामले में केंद्र सरकार से जानकारी मांगी
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सुप्रिम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक के मामलों में दर्ज FIR और चार्जशीट की संख्या मांगी है। कोर्ट ने कहा कि तीन बार तलाक कहने को कानूनी रूप से अवैध माना जाता है और इसे अपराध घोषित करना ही उचित है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक मामले में जानकारी मांगी है। शीर्ष अदालत जानना चाहती है कि 2019 के मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम के उल्लंघन में कितने पुरुषों पर केस दर्ज हुए हैं। यह कानून तीन तलाक को अपराध मानता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कई मुस्लिम पुरुषों और संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी है। इस पर सुनवाई 17 मार्च से शुरू होगी।\ तीन तलाक मामले में कितनी FIR , SC ने केंद्र से

पूछासर्वोच्च कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि तीन तलाक के मामलों में कितनी एफआईआर और चार्जशीट दाखिल हुई हैं। कोर्ट ने सभी पक्षों से तीन पन्नों का लिखित जवाब भी मांगा है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि चूंकि तीन तलाक अवैध है, इसलिए तलाक माना ही नहीं जाएगा। अब मुद्दा इसे अपराध घोषित करने का है। कोर्ट ने सभी राज्यों से ऐसे मामलों की सूची मांगी है जहां FIR दर्ज हुई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि लिस्ट में ग्रामीण इलाकों के आंकड़े भी शामिल होने चाहिए।\सीजेआई बोले- मुझे यकीन है...सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी सभ्य समाज में ऐसी प्रथा नहीं होती। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ‘तीन तलाक’ को वैध बनाने के पक्ष में बहस नहीं कर रहे थे, बल्कि वे इसे अपराध घोषित करने के खिलाफ थे। सीजेआई खन्ना ने कहा कि मुझे यकीन है कि यहां कोई भी वकील यह नहीं कह रहा है कि यह प्रथा सही है, लेकिन वे जो कह रहे हैं, वह है कि जब इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, तो क्या इसे अपराध माना जा सकता है और एक बार में तीन बार तलाक कहकर तलाक नहीं हो सकता है। ' तीन तलाक कानूनी रूप से अवैध- SCपीठ ने कहा कि चूंकि ‘तीन तलाक’ कानूनी रूप से अमान्य है, इसलिए कानून प्रभावी रूप से केवल तीन बार तलाक कहने मात्र पर जुर्माना लगाता है, जो मौजूदा मुकदमे में विवाद का विषय है। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक कानूनी रूप से अवैध है। इसलिए कानून सिर्फ तीन बार तलाक कहने पर जुर्माना लगाता है, जो इस मुकदमे का मुख्य मुद्दा है।\क्या बोले सॉलिसिटर जनरलसॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी गतिविधि को दंडनीय अपराध घोषित करना सरकार का अधिकार है। उन्होंने इस तर्क का विरोध किया कि इस कानून में सजा ज्यादा है। उन्होंने कहा कि इस कानून में अधिकतम तीन साल की सजा है। यह सजा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य कानूनों से कम है। तुषार मेहता ने तीन तलाक के बुरे प्रभावों को बताने के लिए परवीन शाकिर की एक पंक्ति का उदाहरण दिया कि तलाक तो दे रहे हो इताब-ओ-कहर के साथ, मेरी जवानी भी लौटा दो मेरी मेहर के साथ। एक याचिकाकर्ता के वकील निजाम पाशा ने कहा कि कानून ने सिर्फ 'तलाक' शब्द के तीन बार उच्चारण को ही अवैध और दंडनीय बना दिया है, जो गलत है। उन्होंने कहा कि दूसरे समुदायों में तलाक के लिए ऐसे सख्त कानून नहीं हैं।\sुनवाई के दौरान पक्ष-विपक्ष में जमकर तर्क वरिष्ठ वकील एम.आर. शमशाद ने कहा कि घरेलू हिंसा विरोधी कानून पहले से ही मौजूद हैं। इन कानूनों में वैवाहिक विवादों का पर्याप्त ध्यान रखा गया है। इसलिए एक अलग आपराधिक कानून की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि वैवाहिक विवाद में पत्नी के साथ मारपीट होने पर भी एफआईआर दर्ज करने में महीनों लग जाते हैं। यहां सिर्फ तलाक शब्द कहने पर एफआईआर दर्ज हो जाती है।तुषार मेहता ने आईपीसी की धारा 506 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि यह कानून उन सिद्धांतों के अनुरूप है जो कुछ खास तरह की मौखिक धमकियों को दंडनीय बनाते हैं। उन्होंने कहा कि तीन तलाक को अपराध घोषित करने से एक जरूरी रोकथाम का उद्देश्य पूरा होता है। Supreme Court on Talaq E Hasan : तलाक-ए-हसन और ट्रिपल तलाक में बड़ा अंतर... सुप्रीम कोर्ट ने समझाया फर्ककोर्ट ने क्या कहाकोर्ट ने कहा कि तीन बार तलाक कहने के बाद भी मुस्लिम पति-पत्नी कानूनी रूप से शादीशुदा ही रहते हैं, क्योंकि यह प्रथा मान्य नहीं है। कानून की धारा 3 तीन तलाक को अवैध और अमान्य घोषित करती है। धारा 4 तीन बार तलाक कहने पर तीन साल की सजा का प्रावधान करती है। समस्त केरल जमियतुल उलेमा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और मुस्लिम एडवोकेट्स एसोसिएशन (आंध्र प्रदेश) जैसी कई संस्थाओं ने कहा है कि यह कानून एक खास धार्मिक समुदाय को निशाना बनाता है।तीन तलाक को तलाक-ए-बिद्दत भी कहते हैं। शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त 2017 को एक ऐतिहासिक फैसले में मुसलमानों के बीच ‘तीन तलाक’ की लगभग 1,400 साल पुरानी प्रथा को अमान्य करार दिया था। न्यायालय ने इस प्रथा को कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ और इस्लामी कानून शरीयत का उल्लंघन बताया था

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