छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक पादरी के शव को दफनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सौहार्दपूर्ण समाधान की उम्मीद जताई है। पादरी के बेटे की याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायालय ने कहा कि शव को सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए।
नई दिल्ली/रायपुर: सुप्रीम कोर्ट ने एक पादरी के शव को दफनाने के मामले में एक सौहार्दपूर्ण समाधान की उम्मीद जताई है और पादरी को सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार करने पर जोर दिया है। बुधवार को न्यायालय ने पादरी के बेटे की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पादरी का शव सात जनवरी से मोर्चरी में रखा है। मामले की सुनवाई जज बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ कर रही है। मामले में रमेश बघेल ने याचिका लगाई है। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने
याचिकाकर्ता के पादरी पिता के शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइ रीति-रिवाज से दफनाने की याचिका को खारिज कर दिया था। 15 दिनों से रखा है शव मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'शव 15 दिन से शवगृह में है, कृपया कोई समाधान निकालें। मृतक का अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक हो। आपसी सहमति से समाधान निकाला जाना चाहिए।’’ छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शव ईसाई आदिवासियों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाया जाना चाहिए, जो परिवार के छिंदवाड़ा गांव से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर स्थित है।याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य के हलफनामे में दावा किया गया है कि ईसाई आदिवासियों के लिए शव को दफनाने के लिए गांव के बाहर जाना एक परंपरा है, यह झूठ है। उन्होंने गांव के राजस्व मानचित्रों को रिकॉर्ड पर रखा और तर्क दिया कि ऐसे कई मामले थे जिनमें समुदाय के सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया था। कोर्ट ने हिंदू आदिवासियों की आपत्ति पर आश्चर्य जताया, क्योंकि वर्षों से किसी ने भी दोनों समुदायों के मृतकों को एक साथ दफनाने पर आपत्ति नहीं जताई थी।जब अदालत ने सुझाव दिया कि वैकल्पिक रूप से पादरी को उनकी निजी भूमि पर दफनाया जा सकता है, तो मेहता ने आपत्ति जताई और कहा कि शव को केवल उस स्थान पर ही दफनाया जाना चाहिए जो गांव से 20-30 किलोमीटर दूर है। इसके बाद कोर्ट ने पक्षकारों की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने कहा था यह दुखद है बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले व्यक्ति को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे। बघेल ने दावा किया है कि छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और अंतिम संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया है। गांव वाले कर रहे हैं विरोध याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य अपने परिजन का अंतिम संस्कार करना चाहते थे और उसके पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में ईसाई लोगों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाना चाहते थे। इसमें कहा गया है, ‘‘यह बात सुनकर कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया और याचिकाकर्ता और उसके परिवार को इस भूमि पर याचिकाकर्ता के पिता को दफनाने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। वे याचिकाकर्ता के परिवार को उसके निजी स्वामित्व वाली भूमि पर शव को दफनाने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं।’’ पुलिस ने भी शव को बाहर दफनाने का प्रेशर बनाया बघेल के अनुसार, ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में किसी ईसाई को दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या निजी जमीन। उन्होंने कहा, ‘‘जब गांव वाले हिंसक हो गए, तो याचिकाकर्ता के परिवार ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद 30-35 पुलिसकर्मी गांव पहुंचे। पुलिस ने परिवार पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव भी बनाया।’
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