अपने घर या किसी जगह का पता बताने के लिए PIN Code का इस्तेमाल होता है। हर जगह का अपना अलग पिनकोड होता है जो उस जगह की पहचान होती है। ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि सबसे पहले इसकी जरूरत कब महसूस हुई और भारत में कैसे पिनकोड की शुरुआत हुई? अगर नहीं तो आइए इस आर्टिकल में आपको History Of PIN Codes बताते...
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय डाक विभाग के इतिहास में पिन कोड का आगमन एक क्रांतिकारी मोड़ था। बढ़ती आबादी और समान नाम वाले स्थानों की संख्या के कारण डाक वितरण में अक्सर भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती थी। चिट्ठियों का गलत स्थान पर पहुंच जाना आम बात थी। इस समस्या के समाधान के लिए एक विशिष्ट और व्यवस्थित कोडिंग सिस्टम की जरूरत महसूस हुई। इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए पिन कोड की शुरुआत की गई। आइए जानते हैं कि कैसे पिन कोड ने भारतीय डाक व्यवस्था को एक नई दिशा दी और पहली बार कब इसकी जरूरत महसूस...
इनका कोई व्यवस्थित वर्गीकरण नहीं था। इससे डाक वितरण प्रणाली को समझना और उसका प्रबंधन करना मुश्किल हो जाता था। पिनकोड सिस्टम कैसे काम करता है? पिनकोड सिस्टम में देश को विभिन्न जोनों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक जोन को एक अद्वितीय कोड दिया गया है। पिनकोड के पहले दो अंक जोन को दर्शाते हैं, तीसरा अंक डाकखाने के क्षेत्र को दर्शाता है, और अंतिम तीन अंक डाकखाने की शाखा को दर्शाते हैं। पिनकोड के फायदे डाक वितरण में तेजी: पिनकोड सिस्टम के आने से डाक वितरण प्रणाली में काफी सुधार हुआ है। अब डाक...
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