आज का शब्द: अंबुधि और हरिवंशराय बच्चन की कविता- नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!

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आज का शब्द: अंबुधि और हरिवंशराय बच्चन की कविता- नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!
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आज का शब्द: अंबुधि और हरिवंशराय बच्चन की कविता- नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- अंबुधि , जिसका अर्थ है- समुद्र, सागर। प्रस्तुत है हरिवंशराय बच्चन की कविता- नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में ! नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में! तू प्रलय काल के मेघों का कज्जल-सा कालापन लेकर, तू नवल सृष्टि की ऊषा की नव द्युति अपने अंगों में भर, बड़वाग्नि-विलोडि़त अंबुधि की उत्तुंग तरंगों से गति ले, रथ युत रवि-शशि को बंदी कर दृग-कोयों का रच बंदीघर, कौंधती तड़ित को जिह्वा-सी विष-मधुमय दाँतों में दाबे, तू प्रकट हुई...

मलयाचल में मलयानिल-सी पल भर खाती, पल इतराती तू जब आती, युग-युग दहाती शीतल हो जाती है छाती, पर जब चलती उद्वेग भरी उत्तप्त मरुस्थल की लू-सी चिर संचित, सिंचित अंतर के नंदन में आग लग जाती; शत हिमशिखरों की शीतलता, श्त ज्वालामुखियों की दहकन, दोनों आभासित होती है मुझको तेरे आलिंगन में! नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में! इस पुतली के अंदर चित्रित जग के अतीत की करुण कथा, गज के यौवन का संघर्षण, जग के जीवन की दुसह व्यथा; है झुम रही उस पुतली में ऐसे सुख-सपनों की झाँकी, जो निकली है जब आशा ने...

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