आज का शब्द: शशि गोपाल सिंह नेपाली की रचना- तन का दिया, प्राण की बाती

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आज का शब्द: शशि गोपाल सिंह नेपाली की रचना- तन का दिया, प्राण की बाती
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आज का शब्द: शशि गोपाल सिंह नेपाली की रचना- तन का दिया, प्राण की बाती

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- शशि , जिसका अर्थ है- चन्द्रमा। प्रस्तुत है गोपाल सिंह नेपाली की रचना- तन का दिया, प्राण की बाती तन का दिया, प्राण की बाती, दीपक जलता रहा रात भर एक दुख की घनी बनी अँधियारी सुख के टिमटिम दूर सितारे उठती रही पीर की बदली मन के पंछी उड़-उड़ हारे बची रही प्रिय आँखों से मेरी कुटिया एक किनारे मिलता रहा स्नेह-रस थोड़ा दीपक जलता रहा रात भर दो दुनिया देखी भी अनदेखी नगर न जाना, डगर न जानी रंग न देखा, रूप न देखा केवल बोली ही पहचानी कोई भी तो साथ...

चार मेरे प्राण मिलन के भूखे ये आँखें दर्शन की प्यासी चलती रहीं घटाएँ काली अंबर में प्रिय की छाया-सी श्याम गगन से नयन जुड़ाए जाग रहा अंतर का वासी काले मेघों के टुकड़ों से चाँद निकलता रहा रात-भर पाँच छिपने नहीं दिया फूलों को फूलों के उड़ते सुवास ने रहने नहीं दिया अनजाना शशि को शशि के मंद हास ने भरमाया जीवन को दर-दर जीवन की ही मधुर आस ने मुझको मेरी आँखों का ही सपना छलता रहा रात भर छह होती रही रात भर चुपके आँख-मिचौनी शशि-बादल में लुटके-छिपते रहे सितारे अंबर के उड़ते आँचल में बनती-मिटती रहीं लहरियाँ...

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