आज का शब्द: बंकिम और रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 'उर्वशी' से चुनिंदा अंश
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- बंकिम , जिसका अर्थ है- टेढ़ा, तिरछा। प्रस्तुत है रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित ' उर्वशी ' से चुनिंदा अंश फिर क्षुधित कोई अतिथि आवाज देता फिर अधर-पुट खोजने लगते अधर को, कामना छूकर त्वचा को फिर जगाती है, रेंगने लगते सहस्रों सांप सोने के रुधिर में, चेतना रस की लहर में डूब जाती है और तब सहसा न जानें , ध्यान खो जाता कहाँ पर.
सांस में सौरभ, तुम्हारे वर्ण में गायन भरा है, सींचता हूँ प्राण को इस गंध की भीनी लहर से, और अंगों की विभा की वीचियों से एक होकर मैं तुम्हारे रंग का संगीत सुनता हूँ और फिर यह सोचने लगता, कहाँ ,किस लोक में हूँ ? कौन है यह वन सघन हरियालियों का, झूमते फूलों, लचकती डालियों को? कौन है यह देश जिसकी स्वामिनी मुझको निरंतर वारुणी की धार से नहला रही है ? कौन है यह जग, समेटे अंक में ज्वालामुखी को चांदनी चुमकार कर बहला रही है ? कौमुदी के इस सुनहरे जाल का बल तोलता हूँ, एक पल उड्डीन होने के लिए पर खोलता हूँ।...
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