आज का शब्द: भीति और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- उत्तर और बृहन्नला
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- भीति , जिसका अर्थ है- भय, डर, कोई अप्रिय या अनिष्ट बात होने की आशंका, खटका, दीवार । प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- उत्तर और बृहन्नला अति असह्य अज्ञात वास जब पूरा होने पर आया, वीर पांडवों ने तब मन में एक अलौकिक सुख पाया। उन्हीं दिनों पाकर सहायता कुरुपति, द्रोण, कर्ण, कृप की, हरी सुशर्मा ने बहु गायें चिर वैरी विराट नृप की॥ मत्स्यराज पर विपद देख कर निज कर्तव्य सोच मन में, करने को सहायता उनकी गए युधिष्ठिर भी रण में। सज्जन निज...
रसाल— “बृहन्नले! रण में जाकर तू मुझको नहीं भूल जाना, कुटिल कौरवों को परास्त कर उनके वस्त्र छीन लाना। उनसे रंग-बिरंगी गुड़ियाँ मैं सानंद बनाऊँगी और खेलती हुई उन्हीं से मैं तेरा गुण गाऊँगी॥ सुन कर उसके वचन पार्थ यों उसे देख कुछ मुसकाए, उत्तर दिए बिना ही फिर वे स्यंदन शीघ्र सजा लाए। कहते नहीं श्रेष्ठ जन पहले करके ही दिखलाते हैं, कार्य सिद्ध करने से पहले बातें नहीं बनाते हैं॥ रथारूढ़ होकर फिर दोनों समर भूमि को चले सहर्ष, चकित हुआ मन में तब उत्तर देख पार्थ-पाटव-उत्कर्ष। पुर से निकल शीघ्र पहुँचे वे...
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