इस विधि से करते हैं राजमा की खेती तो होगी बंपर पैदावार, फटाफट नोट करें तरीके

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इस विधि से करते हैं राजमा की खेती तो होगी बंपर पैदावार, फटाफट नोट करें तरीके
एक्सपर्ट से जान लें पूरा हिसाब-किताबराजमा की खेती की तरीकाअच्छी जुताई करने के लिए हैरोइंग जरूरी
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राजमा को अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है. यदि वर्षा अपर्याप्त है, तो बुवाई से पहले सिंचाई करें. फसल को महत्वपूर्ण विकास चरणों जैसे कि फूल और फली के विकास पर सिंचाई करें. औसतन, राजमा को वर्षा पैटर्न के आधार पर अपने विकास चक्र के दौरान 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है.

राजमा भारत में एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो अपने पोषण मूल्य और पाककला में विविध प्रयोगों में बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाती है. उत्तर भारत में, खरीफ का मौसम, जो जून से अक्टूबर तक होता है, राजमा की खेती के लिए आदर्श है. इस पर जानकारी देते हुए प्रोफेसर एसके सिंह विभागाध्यक्ष बतातें है कि सफल खेती में उचित भूमि तैयारी, उपयुक्त किस्मों का चयन, बुवाई तकनीक, सिंचाई, पोषक तत्व प्रबंधन और कीट और रोग प्रबंधन इत्यादि शामिल हैं. राजमा 6.0 से 7.

उत्तर भारत में राजमा की बुवाई का सबसे अच्छा समय जून के अंत से जुलाई की शुरुआत तक है, जो मानसून की शुरुआत के साथ मेल खाता है. लाइन बुवाई या छिटकवा विधियों का उपयोग करें. पंक्तियों के बीच 30-45 सेमी और पंक्ति के भीतर पौधों के बीच 10-15 सेमी की दूरी बनाए रखें. अनुशंसित बीज दर 75-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. उचित अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए बीजों को 4-6 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए.

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