जॉर्जिया में 28 मई को एक कानून पास हुआ है, जिसके खिलाफ लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए हैं.
चालीस लाख की आबादी वाले इस देश के इस कानून पर कई देशों का विशेष ध्यान नहीं गया होगा लेकिन जॉर्जिया के कई आम लोगों के लिए यह बड़ा झटका था.
कार्त्सीवादज़े कहती हैं, "जॉर्जिया के पास ख़ास प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं. इसलिए न केवल उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर बल्कि उसकी आर्थिक व्यवस्था पर भी संकट आ जाएगा." जॉर्जिया की सरकार का कहना है कि देश की संप्रभुता को पश्चिमी देशों के ख़तरे से बचाने के लिए यह कानून ज़रूरी है. जॉर्जिया के युवा केवल देश की यूरोपीय सदस्यता की संभावना समाप्त होने से चिंतित नहीं हैं बल्कि वो देश पर रूस का प्रभाव भी नहीं चाहते.जॉर्जिया- रूस संबंधों का इतिहासपहले विश्व युद्ध के तीन साल बाद वो आज़ाद हो गया लेकिन 1921 में बोल्शेविक रूस ने उस पर हमला करके कब्ज़ा जमा लिया और अगले सत्तर वर्षों तक जॉर्जिया सोवियत संघ का हिस्सा रहा.
वे कहते हैं, "नब्बे के दशक में जॉर्जिया के पूर्वी राज्य साउथ ओसेटिया और पश्चिमोत्तर में अबख़ाज़िया ने पृथक होकर अपने आप को आज़ाद घोषित कर दिया. इन दोनों राज्यों की अधिकांश आबादी देश के अल्पसंख्यक जातीय समूहों की है." "फ़िलहाल वहां कोई संघर्ष नहीं चल रहा लेकिन तनाव मौजूद है और संघर्ष कभी भी भड़क सकता है क्योंकि इन दोनों राज्यों पर रूस का नियंत्रण है. उसकी दक्षिणी सीमा से जुड़ी रूसी महत्वाकांक्षा यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि वो जॉर्जिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है.''
प्रोफ़ेसर स्टीफ़न जोन्स ने कहा, "जॉर्जिया रूस की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को देख सकता था और जानता था कि रूस उसे भी निशाना बना सकता है. वहीं देश में बड़ी संख्या में रूस लोग आ रहे थे जिसके चलते मकानों के किराये और खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ रही थीं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए जॉर्जिया ने रूस के यूक्रेन पर हमले के विषय में व्यावहारिक रूख अपनाया और रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध नहीं लगाए."
वो अतीत की याद दिलाती है जब दस साल से पहले जॉर्जिया में राष्ट्रपति शाकाशवेली के नेतृत्व वाली ‘यूनायटेड मूवमेंट नेशनल पार्टी’ की सरकार थी जिसने देश को यूरोपीय संघ के नज़दीक ले जाने की राह चुनी थी, लेकिन जल्द ही उनके नेतृत्व को चुनौती मिलने लगी. जॉर्जियन पार्टी का कहना है कि वो देश के आत्मसम्मान और संप्रभुता को ध्यान में रख कर नीतियां बनाती हैं. मगर उसकी नीतियां देश के पश्चिमी सहयोगियों के ख़िलाफ़ होती दिख रही हैं. यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद पार्टी के संस्थापक का रुख खुल कर सामने आ गया है.
वे कहती हैं, "यह बहुत चौंकाने वाला फ़ैसला है. वो आसानी से चुनाव जीत सकते थे क्योंकि फ़िलहाल देश में कोई मज़बूत विपक्ष नहीं है. वो जानते थे कि लोगों को यह फ़ैसला पसंद नहीं आएगा फिर भी जॉर्जियन ड्रीम पार्टी ने चुनाव से पहले यह कानून पास करके अपने पैरों पर ख़ुद कुल्हाड़ी मार दी है.
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