गुजरात उच्च न्यायालय ने किसी कर्मचारी को अर्जित अवकाश नकदीकरण से वंचित करने को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है और अहमदाबाद नगर निगम को कर्मचारी को लीव इनकैशमेंट का लाभ देने का आदेश दिया है.
नई दिल्ली. गुजरात उच्च न्यायालय ने किसी कर्मचारी को अर्जित अवकाश नकदीकरण से वंचित करने को कर्मचारी के संवैधानिक अधिकार ों का उल्लंघन बताया है. अहमदाबाद नगर निगम द्वारा श्रम न्यायालय के फैसले को चुनौती देनी वाली याचिका का निपटारा करते हुए उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की और नगर निगम को कर्मचारी को लीव इनकैशमेंट के लाभ देने का आदेश दिया. गुजरात हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अवकाश नकदीकरण वेतन के समान है, जो एक संपत्ति है. न्यायमूर्ति एम.के.
ठक्कर ने कहा कि किसी वैध वैधानिक प्रावधान के बिना किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करना संविधान का उल्लंघन है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी कर्मचारी ने छुट्टी अर्जित की है, तो उसका नकदीकरण करना उसका अधिकार है और इस अधिकार का हनन निगम द्वारा नहीं किया जा सकता. ये भी पढ़ें- 15 साल लगाकर कंपनी ने बनाई क्रांतिकारी दवा, 21 महीनों में 10 गुना बढ़ा शेयर, FIIs ने कर दिया खेल यह था मामला यह मामला सद्गुणभाई सोलंकी से जुड़ा है, जो 1975 में अहमदाबाद नगर निगम के तकनीकी विभाग में शामिल हुए थे. 2013 तक सोलंकी कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत थे. हालांकि, विभागीय परीक्षा में असफल रहने के कारण उन्हें सहायक के पद पर पदावनत कर दिया गया. उन्होंने मार्च 2013 में इस्तीफा दिया, लेकिन निगम ने इसे स्वीकार करने में सात महीने की देरी की. सोलंकी 30 अप्रैल 2014 को सेवानिवृत्त हो गए. श्रम न्यायालय का आदेश 2018 में श्रम न्यायालय ने एएमसी को निर्देश दिया था कि वह सोलंकी को 1,63,620 रुपये की अवकाश नकदीकरण राशि और 1,000 रुपये का जुर्माना अदा करे. एएमसी ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है. अदालत की टिप्पणी न्यायालय ने कहा कि अर्जित अवकाश नकदीकरण एक कर्मचारी का वैधानिक अधिकार है और इसे न देना संविधान के अनुच्छेद 300ए का उल्लंघन है. कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्मचारी के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती और निगम को इसका पालन करना होगा. यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा और संस्थानों को उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाने वाला है
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