जागरण संपादकीय: शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता, आवश्यक इच्छाशक्ति का अभाव दिखना शुभ संकेत नहीं

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जागरण संपादकीय: शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता, आवश्यक इच्छाशक्ति का अभाव दिखना शुभ संकेत नहीं
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1980 के बाद देश ने यह समझा था कि विश्वविद्यालय के अध्यापकों के लिए समयबद्ध प्रोन्नति का प्रविधान होना चाहिए। इससे न केवल अध्यापकों की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया बल्कि उनके अध्ययन अध्यापन और शोध पर प्रभाव पड़ा। कुछ वर्ष बाद यह आवश्यक था कि ऐसे प्रविधान के प्रभाव का गहन अध्ययन किया जाता लेकिन ऐसा हुआ नहीं...

जगमोहन सिंह राजपूत। यह विचार खूब प्रचलित है कि भविष्य के साम्राज्य ज्ञान के साम्राज्य होंगे। विकास और प्रगति के रास्ते निर्बाध चलते रहने के लिए ऐसे युवाओं की आवश्यकता होगी, जो ज्ञान की समझ से युक्त हों और वे नए ज्ञान के प्रति न केवल सतर्क रहें, बल्कि उसमें भागीदारी कर नया ज्ञान सृजित भी करें। यही नहीं, वे इस सबका जनकल्याण के लिए सदुपयोग करने के लिए तत्पर रहें। चुस्त-दुरुस्त स्कूल शिक्षा व्यवस्था तथा शोध एवं नवाचार में अग्रणी विश्वविद्यालय इसकी पहली आवश्यकता होंगे। भारत के पास अत्यंत विस्तृत...

माने जाते थे। मदन मोहन मालवीय, राधाकृष्णन, सर आशुतोष मुखर्जी, गंगानाथ झा, अमरनाथ झा जैसे मनीषी कुलपति पदों को सुशोभित कर चुके हैं। आज देश में एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं और इनमें कुलपति के पद पर नियुक्ति की इच्छा रखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। समय के साथ जो बदलाव हुआ है, उसका प्रभाव इन नियुक्तियों पर भी पड़ा है। आज ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो तीन से चार बार विभिन्न विश्वविद्यालयों मे कुलपति पद सुशोभित कर चुके हैं और अगली बार भी कुलपति बनने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।...

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