तबले की उत्पत्ति को लेकर कई रोचक कहानियां हैं। इस लेख में हम तबले की उत्पत्ति के बारे में प्रचलित कहानियों और उनके इतिहास का विश्लेषण करेंगे।
तबले की उत्पत्ति को लेकर कई कहानियां हैं। इस वाद्य यंत्र की उत्पत्ति को लेकर लोगों के अलग-अलग मत हैं। तबला भारतीय संगीत का अनमोल हिस्सा है। इस वाद्य यंत्र की धुनें हर प्रस्तुति को जीवंत बना देती हैं। महान कला कारों ने तबला को दुनियाभर में पहचान दिलाई है। तबला वाद्य पर बजने वाले मूलत: 10 वर्ण माने जाते हैं। इनमें छह वर्ण दाहिने तबले पर तथा दो वर्ण बायें तबले या डगे पर स्वतंत्र रूप से बजाए जाते हैं, तो वहीं दो वर्णों को संयुक्त वर्ण माना जाता है। लकड़ी, धातु और चमड़े से बने तबले की उत्पत्ति को
लेकर एक कहानी बेहद प्रचलित है। इस कहानी के मुताबिक, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत प्रस्तुति में मुख्य वाद्य यंत्र तबला की उत्पत्ति बेहद रोचक है। दरअसल, 18वीं शताब्दी में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के दरबार में पखावज वादकों की प्रतियोगिता रखी गई। इसमें हार जाने के बाद एक वादक ने गुस्से में अपने पखावज को तोड़ दिया। इसके टूटे हुए दो हिस्सों को ऐसे बजाया गया कि वह आज के तबले जैसा लगने लगा। प्रचलित कहानी के मुताबिक, पखावज के दो हिस्सों को बजाते समय लोगों ने कहा कि तब भी बोला, जो धीरे-धीरे तब्बोला और फिर तबला बन गया। हालांकि, इस कहानी को प्रमाणित नहीं माना जाता है। कई लोगों द्वारा तबले का श्रेय अमीर खुसरो खान नामक ढोलकिया को दिया जाता है। माना जाता है कि अमीर खुसरो को 'ख्याल' संगीत शैली के लिए एक मधुर और परिष्कृत ताल वाद्य बनाने का काम सौंपा गया था। इसी प्रयास का परिणाम तबला हो सकता है। जाकिर हुसैन मानते थे कि तबला का अस्तित्व कई हजार सालों से है। तबले की उत्पत्ति को जानने के लिए उन्होंने संस्कृत ग्रंथों को पढ़ा था। ग्रंथों को पढ़ने के बाद उनका तर्क था कि अगर तबला 18वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया होता, तो सनातनी देवी-देवताओं के नाम पर परन का निर्माण नहीं हुआ होता। गणेश परन, सरस्वती परन, शिव परन, ये सभी परन संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं।
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तबले की उत्पत्ति : कई कहानियां, एक सच्चाईतबले की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न कहानियां प्रचलित हैं, जिसमें पखावज टूटने से उत्पत्ति और अमीर खुसरो खान का योगदान प्रमुख हैं। हालांकि, जाकिर हुसैन का मानना था कि तबला का अस्तित्व कई हजार सालों से है, जो संस्कृत ग्रंथों में उल्लेखित है।
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