धान की फसल की रोपाई के एक महीने बाद, फसल की वृद्धि के साथ-साथ कीट और रोगों का खतरा भी बढ़ रहा है. विशेष रूप से बारिश और बाढ़ के बाद, धान की फसल में रोगों का प्रभाव बढ़ जाता है. इनमें से भूरा फुदका कीट का प्रकोप सबसे गंभीर होता है. पिछले कुछ दिनों से रुक-रुक कर हो रही बारिश ने इस कीट के हमले की संभावना और बढ़ा दी है.
रायबरेली जिले के सहायक विकास अधिकारी , दिलीप कुमार सोनी , जो कि कृषि क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखते हैं, बताते हैं कि भूरा फुदका कीट मुख्यतः नमी और उच्च तापमान की स्थिति में फैलता है. ये कीट धान की फसल के लिए बेहद नुकसानदायक होता है. अधिक नमी, तापमान, खेत में नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग और जल जमाव की स्थिति में ये कीट ज्यादा सक्रिय हो जाता है और फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है. भूरा फुदका कीट की पहचान करना बहुत जरूरी है, ताकि किसान समय रहते अपनी फसल को बचा सकें.
अगर ध्यान से देखा जाए, तो ये कीट पत्तियों के निचले हिस्से में समूह बनाकर बैठे दिखाई देते हैं. इससे प्रभावित पौधे धीरे-धीरे पीले और कमजोर दिखने लगते हैं, पत्तियां मुरझाने लगती हैं और अंततः सूख जाती हैं. यदि कीटों का प्रकोप ज्यादा हो, तो पूरा खेत सूखा और जलने जैसा दिखाई देने लगता है, जिसे “हॉपर बर्न” कहा जाता है. भूरा फुदका कीट के हमले से पौधों की बढ़वार रुक जाती है, जिससे वे छोटे रह जाते हैं और धान की बालियों की संख्या भी कम हो जाती है. इसका असर उपज पर पड़ता है, जिससे फसल में भारी कमी आ जाती है.
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