बजट से पहले आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मिडिल क्लास और भारत की धीमी जीडीपी वृद्धि को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी वृद्धि दर केवल 6.4% रहने का अनुमान है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे कम है.
मिडिल क्लास के लिए स्थिति चिंताजनक', बजट से पहले रघुराम राजन ने क्यों जताई चिंता? सरकार को किया अगाह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को वित्त वर्ष 2025-26 का बजट पेश करेंगी. इससे पहले आरबीआई के पूर्व गवर्नर और जाने-माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने मिडिल क्लास और भारत की धीमी जीडीपी वृद्धि को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी वृद्धि दर केवल 6.4% रहने का अनुमान है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे कम है.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि भारत में डिमांड और सप्लाई का पैटर्न चिंताजनक है. देश की जीडीपी ग्रोथ में बुनियादी सच्चाई नहीं बदले हैं. मुझे जो सबसे ज्यादा चिंता थी वह थी कि भारत में डिमांड और सप्लाई केवल हाई क्लास में ही बढ़ रहा है. निचले मिडिल क्लास के लोगों के लिए स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि उनके लिए नौकरियों की कमी है. यह समस्या अभी भी बनी हुई है. राजन ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में सतत आर्थिक विकास के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि केवल सरकारी निवेश पर निर्भर रहना विकास के लिए पर्याप्त नहीं होगा.राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.4% रहने का अनुमान है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे धीमी है. इसके अलावा जुलाई-सितंबर तिमाही में प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (PFCE) 6% तक गिर गया, जबकि पिछली तिमाही में यह 7.4% था.देश की वर्तमान जीडीपी ग्रोथ पर टिप्पणी करते हुए पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारत की विकास दर 6% के स्थिर स्तर पर आ गई है, लेकिन यह दर भारत के लिए पर्याप्त नहीं है. हमें इससे ज्यादा की जरूरत है. हमें अपनी जनसंख्या के फायदे का पूरा लाभ उठाना चाहिए. उन्होंने कहा कि विकास को गति देने के लिए केवल सरकारी निवेश पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. हमें निजी क्षेत्र को आगे आना होगा. यह केवल सरकार का काम नहीं हो सकता. भारत को सतत विकास के लिए अपनी रणनीतियों को और मजबूत करने की जरूरत है.आगामी बजट से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थशास्त्रियों और अन्य संबंधित लोगों के साथ कई दौर की चर्चा की है. इन चर्चाओं में सबसे ज्यादा जोर उपभोग (कंजम्प्शन) पर दिया गया है. पिछले पांच तिमाहियों से शहरी मांग में गिरावट देखी जा रही है. खासतौर पर मिडिल और लोअर इनकम वाले घरों ने अपनी जरूरी चीजों पर खर्च कम कर दिया है. इसके साथ ही खाद्य वस्तुओं की महंगाई ने साबुन, शैंपू से लेकर कार और टू-व्हीलर जैसी वस्तुओं की मांग को प्रभावित किया है, आने वाले बजट में टैक्स में कटौती की उम्मीद की जा रही है. अगर ऐसा होता है, तो यह आम लोगों की जेब में अधिक पैसा डाल सकता है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को खपत के माध्यम से नई रफ्तार मिल सकती है
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