सुप्रिम कोर्ट ने बुधवार को अतुल सुभाष के चार साल के बेटे व्योम की कस्टडी को अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया के पास ही रहने का फैसला सुनाया। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एस सी शर्मा ने वीडियो लिंक के जरिए चार साल के व्योम से बात करने के बाद दिया। यह फैसला बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले अतुल सुभाष की मां अंजू देवी की याचिका के जवाब में आया था, जिसमें उन्होंने अपने पोते की कस्टडी मांगी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अतुल सुभाष के चार साल के बेटे व्योम की कस्टडी को अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया के पास ही रहने का फैसला सुनाया। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एस सी शर्मा ने वीडियो लिंक के जरिए चार साल के व्योम से बात करने के बाद दिया। यह फैसला बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले अतुल सुभाष की मां अंजू देवी की याचिका के जवाब में आया था, जिसमें उन्होंने अपने पोते की कस्टडी मांगी थी। अंजू देवी ने अपने पोते की कस्टडी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था,
जबकि अतुल सुभाष के पिता पवन कुमार ने भी सार्वजनिक रूप से पोते की कस्टडी की मांग की थी। अंजू देवी की याचिका में दावा किया गया है कि न तो निकिता सिंघानिया और न ही उनके परिवार के सदस्यों ने चार साल के ठिकाने के बारे में बताया है। निकिता सिंघानिया ने अपने बेटे के स्थान के बारे में जानकारी से इनकार कर दिया था। अदालत ने तीन राज्यों (कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और हरियाणा) की सरकारों को स्थिति पर स्पष्टता प्रदान करने का निर्देश दिया था। जस्टिस नागरत्ना ने पिछली सुनवाई यानी 7 जनवरी को टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये कहते हुए खेद हो रहा है कि बच्चा याचिकाकर्ता के लिए अजनबी है। अतुल सुभाष और निकिता सिंघानिया की शादी 2019 में हुई थी। बेटे का जन्म 2020 में हुआ। 2021 में निकिता सिंघानिया ने एक विवाद के बाद अपने पति अतुल सुभाष के बेंगलुरु स्थित घर को छोड़ दिया। 2022 में, उन्होंने अतुल सुभाष और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। दो साल के विवादों के बाद, 9 दिसंबर को अतुल सुभाष ने अपने बेंगलुरु स्थित फ्लैट में आत्महत्या कर ली थी। 81 मिनट के वीडियो और 24 पृष्ठ के सुसाइड नोट में उन्होंने निकिता सिंघानिया और उनके परिवार पर 3 करोड़ रुपए हड़पने के लिए उनके और उनके माता-पिता के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराने का आरोप लगाया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि न्याय प्रणाली ऐसे मामलों में महिलाओं के पक्ष में पक्षपाती है। इस घटना ने पति या ससुराल वालों की क्रूरता से महिलाओं की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के दुरुपयोग पर आक्रोश और बहस को जन्म दिया था
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