भारत सरकार ने 'एक देश-एक चुनाव' विधेयक को लेकर अपनी बात रखी है और यह स्पष्ट कर दिया है कि एक साथ चुनाव क्यों जरूरी है।
भारत सरकार ने 'एक देश-एक चुनाव' विधेयक को लोकसभा में पेश करने और उसके लिए जेपीसी को भेजे जाने के बीच, इस व्यवस्था को अपनाने की वजह स्पष्ट की है। सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना एक नई बात नहीं है, यह देश में पहले यही प्रथा थी। यह व्यवस्था लागू करने से देश के विकास में तेजी आएगी। सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से सरकार का ध्यान विकास ात्मक गतिविधियों और जनता के कल्याण को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर केंद्रित रहेगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के
निष्कर्षों का हवाला देते हुए सरकार ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में समय-समय पर चुनावी चक्र में उलझे होने के कारण राजनीतिक दल, उनके नेता, विधायक और राज्य और केंद्र सरकारें अक्सर शासन संबंधी कार्यों को प्राथमिकता देने में चूक जाते हैं। उनका सारा ध्यान अगले चुनाव की तैयारियों पर केंद्रित हो जाता है। सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से शासन में निरंतरता को बढ़ावा मिलेगा, जो विकास गतिविधियों में तेजी लाने के लिए बेहद अहम है। सरकार ने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ कराए गए थे। यह परंपरा 1957, 1962 और 1967 में भी जारी रही। कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में यह चक्र बाधित हो गया। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, जिसके बाद 1971 में नए चुनाव हुए। आपातकाल के बाद स्थिति ज्यादा बिगड़ी पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल आपातकाल की घोषणा के कारण अनुच्छेद 352 के तहत 1977 तक बढ़ा दिया गया था। तबसे स्थिति कुछ ज्यादा ही बिगड़ी और केवल कुछ ही लोकसभाएं पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाईं जिसमें आठवीं, 10वीं, 14वीं और 15वीं लोकसभा शामिल हैं। छठी, सातवीं, नौवीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा को समय से पहले भंग किया गया। पिछले कुछ वर्षों में राज्य विधानसभाओं में भी इसी तरह के व्यवधान सामने आए हैं। सरकार का निष्कर्ष कहता है कि एक साथ चुनाव राजनीतिक दलों के लिए अवसर बढ़ाने वाले साबित होंगे और जिम्मेदारियों को भी न्यायोचित तरीके से बांटा जाएगा।
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