एक देश एक चुनाव कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है। रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के कई फायदे बताए गए हैं।
नई दिल्ली: एक देश एक चुनाव को लेकर बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18000 से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने कहा है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही लोकतांत्रिक परंपरा की नींव गहरी होगी और इंडिया जो कि भारत है की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी। उच्च स्तरीय समिति ने वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर 62
राजनीतिक दलों से संपर्क किया था जिसमें 47 राजनीतिक दलों ने जवाब दिया। इसमें 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया वहीं 15 राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। गुरुवार समिति की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में इन 5 बड़ी बातों का जिक्र है-इस बीच, 17 दिसंबर को वन नेशन, वन इलेक्शन बिल लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की तरफ से पेश भी किया गया। विपक्षी दलों ने जहां इसका विरोध किया और इसे संविधान विरोधी बताया तो सत्ता पक्ष ने इसका समर्थन किया। हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस बिल जेपीसी में भेजना सही रहेगा। इसके बाद कानून मंत्री मेघवाल ने भी इसे भी इसे जेपीसी में भेजे जाने का समर्थन किया। लोकसभा में यह बिल समर्थन में 269 और विपक्ष में 198 वोट से पास हो गया। ➤ पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता वाली कमेटी ने पहले कदम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। साथ ही इसके बाद 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की भी सिफारिश की है। इस समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नयी लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।➤ इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा के लिए जब नए चुनाव होते हैं, तो उस सदन का कार्यकाल ठीक पहले की लोकसभा के कार्यकाल के शेष समय के लिए ही होगा। जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं, तो ऐसी नई विधानसभाओं का कार्यकाल -अगर जल्दी भंग नहीं हो जाएं तो लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा। ➤ समिति ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए, संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन की आवश्यकता होगी
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