इस लेख में लो टनल विधि के माध्यम से खीरे की सर्दियों की खेती के लाभों, प्रक्रिया और लाभों का विवरण दिया गया है.
आपको बता दें कि वैसे तो खीरे की खेती गर्मियों और बरसात में की जाती है. लेकिन सर्दियों में लो टनल विधि का उपयोग करके खीरे की खेती आसानी से की जा सकती है. इस विधि से किसान टेम्परेचर को अच्छे से कंट्रोल कर सकते हैं, जिससे खीरे की उपज अधिक होती है. लो टनल विधि से खीरे की खेती करने पर किसान तीन गुना अधिक मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि यह तकनीक सर्दियों में भी फसल को बेहतर बढ़ने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां प्रदान करती है.
लो टनल विधि से खेती के लिए, दो से तीन मीटर लंबी और एक सेंटीमीटर मोटी जीआई (लोहे) सरिया या बांस की फट्टियों को अर्द्ध गोलाकार एक से डेढ़ मीटर चौड़े बेड पर दो मीटर की दूरी पर गाड़ा जाता है. इसके ऊपर 25-30 माइक्रोन की पारदर्शी पॉलीथीन सीट से ढक दिया जाता है. इस तरह ढाई से तीन फुट ऊंचाई की टनल बनकर तैयार हो जाती है. इसमें कीट-रोगों का खतरा नहीं रहता साथ ही मौसम की अनिश्चितताओं से नुकसान नहीं होता. बीजों का जमाव बेहतर ढंग से होने के साथ पौधों का विकास आसानी से होता है. सब्जियां और फल समय से पहले ही पककर तैयार हो जाते हैं. जबकि ड्रिप इरिगेशन तकनीक से सिंचाई की जाती है. ज़्यादातर अधिक गर्मी या ज़्यादा सर्दी या बारिश के मौसम में इसका इस्तेमाल किया जाता है. किसान सुभाष सैनी ने Local18 को बताया कि पिछले दो साल से लो टनल विधि से खीरे की खेती कर रहे हैं. नवंबर लास्ट या फिर दिसंबर के स्टार्टिंग में इस लो टनल विधि से खेती की जाती है. जिसमें उन्होंने खीरे की खेती शुरू की है. इस खीरे की खेती में फरवरी महीने के लास्ट में टनल हटा दिया जाता है और उस समय इस खीरे के दाम अन्य खीरे से तीन गुना अधिक मिलते हैं. लो टनल विधि द्वारा लगाई की फसल में दिन का टेंपरेचर 25℃ और रात का टेंपरेचर 15℃ डिग्री बना रहता है. खीरे की खेती में देसी खाद का इस्तेमाल करते हैं बाद में उसमें डीएपी, पोटाश और सल्फर लाइन बनाकर कर उसमें दबा दिया जाता है. लो टनल विधि में 10 हजार रुपये बीघा के हिसाब से फसल में लागत आती है. जबकि 50 से 60 हजार प्रति बीघा के हिसाब से बचत हो जाती है
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