आज का शब्द: आसन्न और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- केशों की कथा

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आज का शब्द: आसन्न और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- केशों की कथा
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आज का शब्द: आसन्न और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- केशों की कथा

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- आसन्न , जिसका अर्थ है- निकट आया हुआ, समीपस्थ, कुछ समय बाद घटित होने वाला। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- केशों की कथा घन और भस्म-विमुक्त भानु-कृशानु सम शोभित नए, अज्ञात-वास समाप्त कर जब प्रकट पांडव हो गए। तब कौरवों से शांति पूर्वक और समुचित रीति से, माँगा उन्होंने राज्य अपना प्राप्य था जो नीति से॥ किंतु वश में कुमति के निज प्रबलता की भ्रांति से, देना न चाहा रण-बिना उसको उन्होंने शांति से। तब क्षमा-भूषण, नित्य निर्भय, धर्मराज...

वर्णन न कर सकती उसे मैं वज्रहृदया परवशा, हरि तुम्हीं एक हताश जन की जान सकते हो दशा॥ केवल दया ही शत्रुओं पर नहीं दिखलाई गई, हा! आज भावी सृष्टि को दुर्नीति सिखलाई गई। चलते बड़े जन आप हैं संसार में जिस रीति से, करते उन्हीं का अनुकरण दृष्टांत-युत सब प्रीति से॥ जो शत्रु से भी अधिक बहुविध दु:ख हमें देते रहे, वे क्रूर कौरव हा! हमीं से आज बंधु गए कहे। नीतिज्ञ गुरुओं ने भुला दी नीति यह कैसे सभी— “अपना अहित जो चाहता हो वह नहीं अपना कभी॥” जो ग्राम लेकर पाँच ही तुम संधि करने हो चले, औदार्य और दयालुता ही...

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